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धर्मपरीक्षा-६ पालयन्ती गृहं यज्ञे शयीथा' वेश्मनो ऽन्तरे। शाययेबंटुकं द्वारे निगद्येति गतो द्विजः ॥२४ गते भर्तरि सा पापा' चकमे बटुकं विटम् । स्वैरिणीनां महाराज्यं शून्ये वेश्मनि जायते ॥२५ दर्शनैः स्पर्शनैः कामस्तयोर्गुह्यप्रकाशनैः। ववृधे तरसा तीवः सपिःस्पर्शरिवानलः ॥२६ सर्वाभिरपि नारीभिः सर्वस्य ह्रियते मनः। तरुणस्य' तरुण्या हि स्वैरिण्या स्वैरिणो न किम् ॥२७ बुभुजे तामविधामं स' पोनस्तनपीडितः । विविक्ते युवति प्राप्य विरामं कः प्रपद्यते ॥२८
२४) १. क शयनं कुरु। २५) १. पापिनी। २. अकरोत् । ३. क शून्यमन्दिरे । २६) १. घृत। २७) १. क पुरुषस्य। २८) १. क बटुकः । २. क कठिनस्तन । ३. क एकान्ते। ४. क विश्रामम्; विलम्बनम् । ५. करोति।
__तब वह पत्नीसे 'हे यज्ञे! तू गृहकी रक्षा करती हुई घरके भीतर सोना और इस बटुकको दरवाजे पर सुलाना' यह कहकर मथुरा चला गया ॥२४॥
पतिके चले जानेपर उस पापिष्ठाने उस बटुकको जार बना लिया। ठीक है-तूने घरमें दुराचारिणी स्त्रियोंका पूरा राज्य हो जाता है ॥२५॥
उस समय उन दोनोंके मध्यमें एक दूसरेके देखने, स्पर्श करने और गुप्त इन्द्रियोंको प्रकट करनेसे कामवासना वेगसे इस प्रकार वृद्धिंगत हुई जिस प्रकार कि घीके स्पर्श से अग्नि वृद्धिंगत होती है ।।२६॥
सभी स्त्रियाँ स्वभावतः सब पुरुषोंके मनको आकर्षित किया करती हैं। फिर क्या दुराचारिणी युवती स्त्री दुराचारी युवक पुरुषके मनको आकर्षित नहीं करेगी ? वह तो करेगी ही ॥२७॥
वह बटुक यज्ञाके कठोर स्तनोंसे पीड़ित होकर उसे निरन्तर ही भोगने लगा। ठीक है-एकान्त स्थानमें युवती स्त्रीको पाकर भला कौन-सा पुरुष विश्रान्तिको प्राप्त होता है ? कोई भी नहीं-वह तो निरन्तर ही उसको भोगता है ॥२८॥
२५) क ड इ चक्रमे। २६) इ कामो भूयो गुह्य'; क स्पर्शादिवानलः । २८) ड इ विरागं कः ।