SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 7
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आगम (०१) “आचार” - अंगसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) श्रुतस्कंध [१], अध्ययन [१], उद्देशक [१], नियुक्ति: [१-६७], [वृत्ति-अनुसार सूत्रांक १-१२] श्रीआचागंग सूत्रचूर्णिः ॥ २॥ अनुयोगअगादिदिगंतनिक्षेपाः द्वाराणि प्रत वृत्यंक [१-१२] उद्देसो समुदमो अणुण्णा अणुयोगो य पवनति, तस्थ उद्देससमुद्देसअणुण्याओ गयाओ, इह तु अणुओगेणं अहिगारो, सो चउविहो, नंजहा-चरणकरणानुयोगो धम्मामुयोगो गणियाणुयोगो दवियाणुयोगो, सो पुण दुविहो-पृहुत्ताणुयोगो अपुडुत्ताणुयोगो, अपुत्ते एकके अणुयोगद्वारे चत्तारिवि समोयारिअंति, अपुतं जाव अजवइरोत्ति, एत्थ अञ्जबहरजरक्खित पुस्समित्ततिगं च | घेनूर्ण जय पुहुना कया तह माणिया, इह चरणकरणाणुयोगेणं अहिगारो, सो य इमेहिं दारेहिं अणुगंतबो, तंजहा-णिक्खेवेगट्ठ णिरुत्त विही पवनी अ केण वा कस्म । तदारभेदलवणतदरिहपरिसा य सुनत्थो॥१॥ एयाए गाहाए अत्थी जहा कप्पपेढियाए, पवरं कस्सति द्वारं इमं भण्णइ-कप्पे वणियगुणेण आयरिएणं, कस्म कहेयद्यो?, सबस्सेव सुतनाणस्स, बिसेसेण पुण आयारस्स, जेण इह चरणकरणजातामाताव सीओ धम्मो आधविजद, आयारस्म अणुयोगो, 'आयारेण भंते ! किं अंग अंगाई सुतखंधो मुतखंधा अज्झयणं अक्षयणा उद्देसो उरेसा ?, आयारेणं अंगं नो अंगाई नो मुयखंधो सुपखंधा नो अज्ायणं अज्झयणा नो उद्दसो उद्देसा, तम्हा आयारं निक्विविम्मामि अंग निक्खिबिस्सामि सुयं निक्खिविस्मामि खंध निक्खिविस्साभि में निक्खिविस्सामि चरपां निश्विविस्मामि सत्थं निक्विाधिस्मामि परिण निक्विविस्सामि स निक्विविस्सामि दिसं णिक्सिविम्सामि, एरथ पुषण चरणदिसावजाणं दाराणं मम्बेमि चउको निकवेत्रो, चरणम्स दिसाणं तु छको, नन्य गाथा 'चरणदिमाव जाणं'(३-४)वितियगाहा 'जस्थ तु जं जाणेजा(४-४) एम निकादेवलक्षण गाहा,आयारो चउविहो जहा बुडियायारे नहा दबायारो भावायागे य भाणियबा, नत्थ पंचविहेण भावायारेण अहिगागे, नस्म य इमे सत्त दारा भवंति, जहा-तसगट्ट पवत्तण'माहा(५-६) एगट्टियाइओ जहा 'आयारो आचाले' गाहा (७५) नस्थ आयारो पुखमणि ओ, वाणिं श्राचाली, मो चउविहो, नन्थ दवे जहा बातो वृक्ष दीप अनुक्रम [१-१२] Hel॥२॥ मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता......आगमसूत्र-[१], अंग सूत्र-[१] "आचार" जिनदासगणि विहिता चूर्णि: । ...चतुर अनुयोगद्वाराणाम् कथनं, निक्षेपा गाथा:
SR No.006201
Book TitleAagam 01 ACHAR Choorni
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2017
Total Pages388
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy