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________________ [आचार-चूर्णि] इस प्रकाशन की विकास-गाथा यह प्रत सबसे पहले “आचारागसूत्र के नामसे सन १९४१ (विक्रम संवत १९९८) में रुषभदेवजी केशरमलजी श्वेताम्बर संस्था द्वारा प्रकाशित हुई, इस के संपादक-महोदय थे पूज्यपाद आगमोद्धारक आचार्यदेव श्री आनंदसागरसूरीश्वरजी (सागरानंदसूरिजी) महाराज साहेब | वृत्ति की तरह चूर्णी के भी दुसरे प्रकाशनों की बात सुनी है, जिसमे ऑफसेट-प्रिंट और स्वतंत्र प्रकाशन दोनों की बात सामने आयी है, मगर मैंने अभी तक कोई प्रत देखी नहीं है | सिर्फ एक 'आचार-चूर्णि' का नया प्रकाशन तैयार होता हुआ देखा था | +- हमारा ये प्रयास क्यों? -* आगम की सेवा करने के हमें तो बहोत अवसर मिले, ४५-आगम सटीक भी हमने ३० भागोमे १२५०० से ज्यादा पृष्ठोमें प्रकाशित करवाए है, किन्तु लोगो की पूज्य श्री सागरानंदसूरीश्वरजी के प्रति श्रद्धा तथा प्रत स्वरुप प्राचीन प्रथा का आदर देखकर हमने उन सभी प्रतो को स्केन करवाई, उसके बाद एक स्पेशियल फोरमेट बनवाया, जिसके बीचमे पूज्यश्री संपादित प्रत ज्यों की त्यों रख दी, ऊपर शीर्षस्थानमे आगम का नाम, फिर श्रुतस्कंध-अध्ययन-उद्देशक-मूलसूत्र-नियुक्ति आदि के नंबर लिख दिए, ताकि पढ़नेवाले को प्रत्येक पेज पर कौनसा अध्ययन, उद्देशक आदि चल रहे है उसका सरलतासे ज्ञान हो शके, बायीं तरफ आगम का क्रम और इसी प्रत का सूत्रक्रम दिया है, उसके साथ वहाँ 'दीप अनुक्रम' भी दिया है, जिससे हमारे प्राकृत, संस्कृत, हिंदी गुजराती, इंग्लिश आदि सभी आगम प्रकाशनोमें प्रवेश कर शके हमारे अनुक्रम तो प्रत्येक प्रकाशनोमें एक सामान और क्रमशः आगे बढ़ते हए ही है, इसीलिए सिर्फ क्रम नंबर दिए है, मगर प्रत में गाथा और सूत्रों के नंबर अलग-अलग होने से हमने जहां सूत्र है वहाँ कौंस -] दिए है और जहां गाथा है वहाँ ||-|| ऐसी दो लाइन खींची है। इस आगम चूर्णि के प्रकाशनोमें भी हमने उपरोक्त प्रकाशनवाली पद्धत्ति ही स्वीकार करने का विचार किया था, परंतु जब मैंने 'आचार-चूर्णि' के ९० से ज्यादा पृष्ठों का काम किया तब पता चला की चूर्णि और वृत्ति की संकलन पद्धत्ति सर्वथा भिन्न है, चूर्णिमें प्रत्येक सूत्र स्पष्टरूप से अलग दिखाई नहीं देते, नाही चूर्णिमें सूत्रो या गाथा का कोई स्पष्ट अलग क्रम संकलित हआ है और बहोत स्थानोमें तो सूत्रों के अपूर्ण अंश लिखकर ही पूरी चूर्णि तैयार हुई है, इसीलिए हमें यहाँ सम्पादन पद्धत्ति बदलनी पड़ी है। हम यहाँ प्रत्येक पृष्ठ पर अलग सूत्रक्रम दे नहीं पाये अगर लिख भी देते तो भी आप चूर्णिमें से उसे ढुंढ नहीं पाते क्योंकि चूर्णिमें सभी स्थानोमे अलग क्रमांकन है प्राप्त नहीं है | हमने यहाँ उद्देशक आदि के सूत्रों का क्रम, वृत्ति के क्रमानुसार [१-१४, १५-२४] इस तरह साथमे दिया है ताकि वृत्ति के आधार पर चूर्णिमें से सूत्र ढुंढ शके और बायीं तरफ़ इस वृत्ति के सूत्रक्रम और नीचे दीप-अनुक्रम दिए है, जिससे आप हमारे सभी आगम प्रकाशनोंमे प्रवेश कर शकते है। अभी तो ये jain_e_library.org का 'इंटरनेट पब्लिकेशन' है, क्योंकि विश्वभरमें अनेक लोगो तक पहुँचने का यहीं सरल, सस्ता औ र आधुनिक रास्ता है, आगे जाकर ईसिको मुद्रण करवाने की हमारी मनीषा है। ....मुनि दीपरत्नसागर. [4]
SR No.006201
Book TitleAagam 01 ACHAR Choorni
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2017
Total Pages388
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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