SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 325
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आगम “आचार" - अंगसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) श्रुतस्कंध [१], अध्ययन [९], उद्देशक [२], नियुक्ति: [२८४...], [वृत्ति-अनुसार सूत्रांक २२६/गाथा: १-१४१ बसत्य रांग सूत्र प्रत वृत्यक [२२६गाथा १-१४१ श्रीआचा- पुचो, जेण उपस्सतो या लद्धो तेण गामो ण लदो चेव भपति, कत्थति पुण उवसंकमंति पतिष्णं मिक्खढाए सहीणिमित्तं वा | | उवसंकमंतं (८९) जं भणेज-गाममभिगच्छंतति, अपडिण्णो णाम पए पए परीसहउवसम्गाणं उदिण्णाणं ण पडिक्खिया कायब्वा, लामादि चूर्णिः कारणेण गाममणियंतियं गामम्भासते लाढा पडिनिक्खमेत्तु लूसेंति, णग्गा तुमं किं अम्हं गार्म पविससि!, लूसितित्ति पितॄति, ॥३२०॥ एतो परं पलेहेति-एनो चेव परेण लेहेन्ति, भसणस्स च्छज्झाहित्ति पा निकटते, जं लादा तारिसेण रूपेण तजंति, बुबंति ते तु चिरु विघायण, तारिसे रूबे रजंति, सरिसासरिसु रमंति, तत्थ अन्नत्य वाहियपुबो, तत्थ दंडेण अदुवा अट्टिणा अदु 0 कुंतफलेणं (९०) दंडो मुट्टी कटु, फलमिति चवेडा, अध लेलुणा लेलू नाम लेट्ठगो, कवालं णाम कप्पर, उढिकवाल वा, हंत ।। | तत्ति हणेत्ता अण्णित्ता बईते, अन्ने कंदंति. जं भणितंबाहरंति, अन्नेहिं पुण मंसाणि छिन्नपुवाणि (९१) केयि थूभातेणं | उठुभंति थुकरिति य, परीसहाणि लुचिमु अदुवा पंसुणा अवकिरिंसु पंसुणाइ कयाइव करेंसु, धूलिए वा छारेण वा | भरेंति, तहावि भगवंतो अच्छीवि ण णिमल्लिंति, एगे तु उच्चालइत्ता णिहणिसु (९२) केइ आसणातो खलयंति आयावणभूमीतो पा, जत्थ वा अनन्य ठिओ णिसष्णो चा, केति पुग एवं वेवमाणो हणेता आसणातो वा खलित्ता पच्छा पाएसु पडितुं ||" खमिन्ति, केरिसो य भगवं, बोसहकाए पणतासी उवसग्गेहिं अहियासे पणतो आसी, दक्खाणि सारीराणि सीतउसिणमादीणि ताणि सहति, अपडिण्णो वुत्तो, सूरो संगामसीसे.वा (९३) संगामअग्गं परेहिं समादीएहिं विज्झमाणोविण णियत्तति एवं सो भगवं, रागं दोसं या ण करेति, एवंपि बहहिं उबसग्गेहिं कीरमाणेहि तत्थ लाटेसु य तवे उबसम्गे वा सहमाणो रागदोसHA रहिते तेरसमे परिसे पतेलिसे, पति पति सेवमाणो, जंभणितं भवति-सहमाणो, फरसाई-ककसाई ओरालाई अचलनि परीसहो-16||३२०॥ दीप अनुक्रम [३०४. ३१७] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता......आगमसूत्र-[१], अंग सूत्र-[१] "आचार" जिनदासगणि विहिता चूर्णि: [324]
SR No.006201
Book TitleAagam 01 ACHAR Choorni
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2017
Total Pages388
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy