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________________ आगम (०१) प्रत वृत्यंक [१९७ २०१] दीप अनुक्रम [२१० २१४१ श्रीआचारांग सूत्रचूर्णिः ॥२५८॥ "आचार” - अंगसूत्र- १ (निर्युक्तिः + चूर्णि :) तस्कंध [१] अध्ययन [८] उद्देशक [१] नियुक्तिः [२५३-२७५] [वृत्ति अनुसार सूत्रांक १९७-२०१] बयावि वृत्ताण्णोचि भगइ-जामा तिनि उदाहडा, तंजा-पढमे मज्झिमे पच्छिमे, जामोनि वा वयोति वा एगड्डा, उदाहडा कहिता, अवखाओ, जैसु इमे आयरिया इमे खितायरियादि, नागदंसणचरितारिएहिं अहिगारो छिष्णछेषणस्सट्टि, णाणादिआरियो पव्वाविजति, न तु अणारितो, खित्तारियादि भत्ता, अडवरिसाओ आरद्धं जाव तीसतिवरिसाई ताव पढमो जामो, तीसाओ आरद्धं जाव सट्टिवरिसाई मज्झिमो जामो, इत्थ अतिबालअतिवृद्धा पडिसिद्धा, सेसा अणुष्णाता, तिण्डं जामाणं अष्णयरे जामे, संमं युज्झमाणा संयुज्झमाणा, चरितबोहिते अहिगारो, सम्मं संजमसमुहापेण उट्टिता समुद्धता, तत्थ भगवं पढमे जामे बुढो, गणहरा केइ पढने के मज्झिमे, तत्थ संजमसाणेणचि उडता संता पमावबहुत्ता ण सच्चे शिव्यानं गच्छंतीतिअतो भण्णतिजे विडा पावेहिं कम्मेहिं जे इति अणुद्दिस्स, जे ते तिन्हं वयाणं अण्गतरे समं युज्झमाणा जामसमुत्थाणेण उत्थिता जिव्बुडा उवसंता, कतो ? पाणाइवायाइपहिंको अट्ठारसहिं ठाणेहिं अणियाणा ते विग्राहिया भियाण बंधणो ण तेसिं णिदाणं अस्थि अणिदाणं, जं भणितं अबंधणा, अडवा अणिदाणमिति हेउ रागादि तत्थ जे गिब्बुडा तेसिं रागादिबंधहेऊ ण संभयंति अतो अणिदाणा, दव्वणिदाणं मातापितिमादि धणवनं च, भावनिदाणं विसयकपाया, विविहं आहिया वियाहिया, जे अमणुष्णा कुलिंगिणो लिंगिणो वा ते अरथतो पावति अणिव्युडा सलियाणा व आहिता, केण सब्बयासमणुहि तित्थगरगणदरेहि य जे अमणुष्णा ते उ अहं तिरियं दिसासु पण्णवर्ग पट्टच उट्टे पुप्फफलादिवसकाइ वासायमूलकंदद्गादीविया तिरियं वाता सच्चत्त इति सध्वदिसाविदितासु सम्यकालं च सब्वे सच्च जाव अ सध्यावति सव्यभावेण य, एकेकं प्रति पत्तेयं सका ताब सयं ण पचति पार्वति य, तत्थ कगामा य णिम्मित तहा गामणिण घणधनगावि महिसि मादि उपासगतिमाणि मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र - [०१], अंग सूत्र- [०१] "आचार" जिनदासगणि विहिता चूर्णिः [262] यामत्रयादि ।। २५८ ।।
SR No.006201
Book TitleAagam 01 ACHAR Choorni
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2017
Total Pages388
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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