SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 180
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आगम (०१) “आचार" - अंगसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) श्रुतस्कंध [१], अध्ययन [५], उद्देशक [३], नियुक्ति: [२४९...], [वृत्ति-अनुसार सूत्रांक १५१-१५५] M | पूर्वापररा त्रयजना श्रीआचारांग सूत्र चूर्णिः ।।१७५।। प्रत वृत्यंक [१५११५५] 'पुधावररातं' पुनरायं अपररतं जयमाणो, तत्थ आदिमे दो जामे पुश्वरायं, पच्छि मे अवररार्थ, नत्थ थेरकप्पं पति पुष्वराय | एगजाम जग्गति पनिछमे रनेवि एगं, मज्झे दो यामे सुयति, तन्थवि मचितो जागरति, सुर्यतोऽवि जणयाए सुयति, णिक्खमपवेसेसु य जयणं करेति, जो एवं अचक्षुवियप वि जतणं करेति सो दिवसओ पुबह अवरण्हमज्झहसु परे व जयति, जिणकप्पिया ततियजामे सोतं सत्ता जामेसु जयंति, एवमवधारण, अपहितमेव जयंति, जं भणित-सुर्यतावि जयसा जतंति, सोचा घई मेधावी पंडिताणं, णिसामियति अहिगारो अणुपत्नति, एवं पुष्परनवरत्तसमएसु लोगसार जोसिआसि, तंजहा-'सता सीलं महाप' सया सव्वं कालं, तत्थ सील सभागो, अट्ठारस वा सीलंगसहस्माणि सील, सो साहुमहावी, अहवा 'महावतसिमाधान, तथैवेंद्रियसंवरमा त्रिदंडविरतित्वं च, कपायानां च निग्रा || सीलं इति अवे, सील ण हावए जावजीवं, पुवरत्तावरलेसु जागरिता पच्छा सुवति, एवमणोमुवि इरियादिएसु सीलेसु जहारोयितवाही होजाहिसम्म पेस्ख, जंभणियं-पता सीलो, अहवा सुनेणेव सील भन्नति-'सुणिता भवे अकामे अझंझे' जेण सम्म पेहा भवति तं अवियना मुणियनि तस्सेव अरथे सुणिता अकामसीलो अझंझसीलो, अहया इह आणा खिलि भणियं, तं आणं पुधरत्नाबरते जागरिला सदा सीले, मुणितभावे सुणियत्ति अत्थं सुणित्ता, अप्पमस्थिन्छाकामे पडूय भवे अकामे, जं भणितं-अलु दे, असे, जं भणितं अकोहे, आदिअंतग्गहणा मद्दवत्यो अवकोऽपि भवे, पिंडत्यो तु मुणिमा धम्म भावं च अकामे अझंझेत्ति, उत्तरगुणा गहिता, एवं मूलगुणेहिवि सुणिय भवे अहिंसगो सथावादी जाय य अपरिग्गहोचि, आह-तुझेहि संदिई-तम्हा बेमिण णिहेज बीरियं, अणिगूहियबलवीरिएण परकामियब्वं, तव व परकममाणो तहावि कम्मरयं निरवसेसं न मकामो उम्मूलेतुं, अन्नपि ता किंचि कहेहि सारपदलंभट्ठाए, अवि दीप अनुक्रम STARSA [१६४ ॥१७५॥ १६८ मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता......आगमसूत्र-[१], अंग सूत्र-[१] "आचार" जिनदासगणि विहिता चर्णि: [179]
SR No.006201
Book TitleAagam 01 ACHAR Choorni
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2017
Total Pages388
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy