________________
नगर में महाराज श्री ने दस चातुर्मास किये मेवाड़ के ऊबड़ खाबड़ क्षेत्रों में विचरण किया । अपने अथक प्रयास से महाराज श्री मूर्तिपूजा के विरोध में व्याप्त-भावना को रोकने में सफल हुवे ।
भगवान महावीर के निर्वाण के पश्चात, कालान्तर में श्रमणपरम्परा, जैन धर्म में एक रूपता स्थापित नही रह सकी । श्वेताम्बर, दिगम्बर एवं यानिय सम्प्रदायों का प्रादुर्भाव हुआ । यह सब महावीर निर्वाण के 600 वर्षो के अन्दर हो गया । साथ साथ विभिन्न गच्छों एवं शाखाओं का भी उद्भव हुआ । लेकिन मूलसैद्धान्तिक मान्यताओं में प्राय: कोई भिन्नता नहीं आई । मूर्ति पूजा इन तीनो सम्प्रदायो की धार्मिक मान्यताओ का मुख्य अंग मानी जाती रही ।
1
मूर्तिपूजा के लिए ऐतिहासिक विद्वानों की मान्यता है कि भारत में सर्वप्रथम मूर्ति पूजा जैन परम्परा द्वारा स्थापित की गई एवं इसेक्रमशः बौद्ध, शैव एवं वैष्णव सम्प्रदायों द्वारा अपनाया । जहां तक जैन धर्म के उक्त तीनों श्वेताम्बर, दिगम्बर एवं यापनीय सम्प्रदायों का प्रश्न हैं तीनों में मूर्ति पूजा धार्मिक अनुष्ठान के मुख्य अग के रूप में कायम रही । सम्पूर्ण भारत वर्ष में विक्रम की 15 वी शताब्दी तक ऐसा कोई धार्मिक सम्प्रदाय नहीं था जो मूर्तिपूजा को नही मानता हो । भगवान महावीर के निर्वाण के करीब दो हजार वर्ष तक यह परम्परा स्थापित रही । यवनों के आक्रमण एवं सत्ता - प्राप्ति से उन की धार्मिक मान्यताओं के आधार पर भारत में मूर्तिपूजा का विरोध प्रारम्भ हुआ । सत्ता के पीछे लगना कहीं कहीं मानव स्वभाव पाया गया है । कुछ भी