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॥ श्री महावीराय नमः ॥ प्रकाशकीय....
पूज्य उपाध्याय जी श्री धर्मसागर जी महाराज के शिष्यरत्न पूज्य प. गुरुदेव श्री अमय सागर जी म.सा. के शिष्य पू. गणीवर्य श्री अशोक सागर जी म. सा. आदि ठाणा ८ का उदयपुर शहर में संवत् २०४० का सफल चातुर्मास हुआ। प्रथम व्याख्यान में गनीवर्य श्री ने अजोडवादी शान्त,दान्त, त्यागी, तपस्वी, धुरन्धरविदान, दृढ़संयमी पूज्य श्री बवेरसागर जी म.सा. द्वारा संवत् १९३५ से१९४४ तक लगातार उदयपुर शहर में चातुर्मास कर उपासरे को स्थापना, २४ मन्दिरों का जिर्णोद्धार ध्वजा दण्ड कलश एवं अन्य सामग्री दिलवाई, ज्ञान भण्डार को अभिवृद्धि कर शासन की महान सेवा की, इस प्रकार गमीवयंधी ने उदयपुर श्री संघ तथा धावकों पर उनका महान् उपकार बताया। साथ साथ यह मो बताया गया कि इसका सारा विवरण गुजराती भाषा में पू. गुरुदेव श्री अभय सागर जी म. सा. द्वारा लिखित "सागरनु जवेरात" पुस्तक में आपको पढ़ने में आ सकता है। अतएवं उसी समय चौगान के मन्दिर जो से यह पुस्तक प्राप्त कर यह तय किया गया कि मूल पुस्तक का हिन्दी में अनुवाद करवाया जावें। __ महाराज श्री के सप्रयासों से तशा श्रावकों की धर्म भावना से व्याख्यान में लिए गये निर्णय के बाद इसके