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________________ में पूज्य श्री की प्रेरणा से बोटाद श्री संघ में प्रभुभक्ति के अपूर्व धर्म- रंग के फलस्वरुप जिनालयों में पुजारी को पूरी मुक्ति देकर देहरासर में कचरा निकालना, बर्तन उजले करने, अग पूँछने, साफ करने आदि सामान्य काम से लेकर एक एक प्रभुजी की अष्टाप्रकारी पूजा स्वरुप निज द्रव्य से करने का कार्यकम असोज विद 3 से 10 तक चला । परिणामस्वरुप लोगों में खूब ही प्रभु भक्ति की इच्छा सक्रिय बनी । इस प्रकार उमंग भरे विविध धर्म कार्यो से बोटाद का चातुर्मास प्रकाशमान रहा । चातुर्मास समाप्ति पर वढवाण की आग्रहभरी विनती होने से जोरावर नगरवढवाण की तरफ विहार किया। उसके बाद ग्रहमदाबाद जाने की भावना थी परन्तु लीम्बड़ी महाराज की तरफ से पांजरापोल का महत्व का काम में संघर्ष पड़ जाने से उसके निराकरण के लिये लीम्बड़ी जैन संघ ने पूज्य श्री की आग्रह भरी विनती करके धूमधाम से लीम्बड़ी प्रवेश कराया । लीम्बड़ी में ही पांजरापोल की व्यवस्था तथा अन्य धर्मस्थानों की व्यवस्था के कारण वि. स. 1946 के तथा 1947 के चौमासे करने पड़े । वि स 1948 माघ सु. 11 मौन एकादशी को पू. श्री झवेर सागर जी महाराज नश्वर देह का त्याग कर स्वर्ग के मार्ग पर सचरिन हुए । ॥ इति समाप्त ॥ २४४
SR No.006199
Book TitleSagar Ke Javaharat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaysagar
PublisherJain Shwetambar Murtipujak Sangh
Publication Year
Total Pages272
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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