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दो श्राविकाओं तथा एक नौकर द्वारा श्री संघ के अग्रगण्यों को बील का खाता प्रारंभ करने को प्रेरणा की । परिणामस्वरुप वै. वि. 6 को श्री गिरिराज के मूलनायक प्रभुना मंगलकारी प्रतिष्ठा दिवस से आंबील का शुरुआत कराया ।
पूज्य श्री का जोरदार मार्मिक उपदेश के आधार पर पहले ही दिन 277 आबेल हुए । सेठ श्री परमानंद भाई तरफ से प्रत्येक को श्रीफल रूपयों से बहुमान हुआ । इस रीति से पूज्य श्री के आगमन से श्री संघ में सफल विघ्नहर आंबील की तपस्या स्थाई रूप से हो वैसा शुभ प्रायोजन प्रस्ताव हुआ । जेठसुद में संघ के अग्रगण्यों श्री जादव जी भाई को अपनी अवस्था में स्वयं के अनुमोदन का पूरा करना लाभ मिलता रहे ऐसी समझाइश पूज्य श्री के व्याख्यान से होने से आत्मश्रेयार्थ अठ्ठाइ उत्सव करने की भावना हुई ।
पूज्य श्री की प्रेरणा के अनुसार प्रातःकाल श्रावक जीवन के प्रत्युतम कर्तव्यरूप श्री वीतराग परमात्मा की भक्ति के रहस्य को समझाने वाले आदर्श व्याख्यान, दोपहर विविध बड़ी पूजायें, सन्ध्या काल स्त्रियों का संगीत गाने का, इन सब प्रसंगों पर प्रभावना आदि से धर्मोल्लास का वातावरण उत्तम संजोया । जेठ विद 13 से आर्द्रा बैठने से पूज्य श्री ने श्रावकपन के उत्तम संस्कारों को जीवन में उतारने के लिये भक्ष्याभक्ष विचार की बात जयरणा प्रमार्जन की बात चातु
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