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सुनाया पू. श्री वृद्धिचन्द्र जी म. श्री ने पाँच महामंत्र के अतिरिक्त करेमि भते ( छोटे रुप में ) सुनाया ।
सवा दो बजे पू. गच्छाधिपति श्री ने प्रांखें खोली, सबको हाथ क्षमत क्षमापना किया। सबको विनय पूर्वक खामण किया। तीन के टंकोर के साथ पू. गच्छाधिपति श्री ने वृद्धिचंद जी म. को पास बुलाकर धीमे टूटते शब्दों में बोले कि भाई वृद्धिचंद जी । अब तो हम चले सबको सम्हालना । बस " णमो अरिहंताणं"! ! कह कर प्रांखें मींच ली। थोड़ी देर शारीरिक प्रक्रिया अस्तव्यस्त हुई, श्वास धीरे-धीरे बैठने लगा । आखिर में सवा तीन बजकर पांच मिनिट पर फटाक करके अखें खुल गयीं । " उड़ गया पंछी पड़ा रहा माला " जैसी दशा हो गयी । पू. गच्छाधिपति श्री ज्ञान-ध्यान पूत संयम काया को आयु पूर्ण होने से थोड़ी विशिष्ट गति में संचार कर गये । पू. गच्छाधिपति श्री के शिष्य वृंद में भयानक वज्रपात हुआ, समस्त श्री संघ दिड़ मूढ हो गया । परन्तु अन्ततः संसार की गति का विचार करके सब अपनेअपने कर्तव्य मार्ग में संचरण के लिये तैयार हुए। पू गच्छाधिपति की काया को महापरिष्ठापतिका के कायोत्सर्ग द्वारा पू. श्री वृद्धिचंद जी म. तथा श्रमण संघ में वासक्षेप करके श्री संघ को सौंपकर अपने स्थान परगये ।
भावनगर श्रीसंघ में भी पालीताणा, अहमदाबाद बंबई,
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