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पू. गच्छाधिपति श्री ने बात की। पू. गच्छाधिपति ने भी संघ निकालने वाले व्यक्ति के . चन्द्रबल तथा चन्द्र की दशा इत्यादि देखकर कीकीभट्ठ की पोलवाले श्रावकों को शत्रुजय तीर्थ की यात्रा के लिये छ"री पालना रंघ का माघ वि 11 शनिवार का. श्रेष्ठ मुहूर्त जताया। श्रावक भी खूब प्रसन्न होकर ज्ञान पूजा करके वासक्षेप डलवाकर मांगलिक सुनकर शासन देव के जयनाद के साथ संघ प्रयाण की तैयारी का मंगल संकल्प कर खड़े हो
मये।
पू. गच्छाधिपति श्री को कोई अज्ञात संकेत से अब जाने यहीं फिर से नहीं आना हो उस प्रकार सब काम झटपट निपटाकर वृद्ध साधुनों को तथा श्रावकों को भी अन्तिम प्रथम पूरा कर सबको मिलकर सुन्दर हितशिक्षा बारंबार फरमाने लगे। पूज्य श्री ने पूज्य गच्छाधिपति की ऐसी पद्धति से तनिक मन में लगा कि "साहेब । क्यों ऐसा करते हैं, परन्तु "बड़े जो करते है समझकर करते है " की नीति के आधार पर पूज्य श्री ने तथा समुदाय के अन्य बड़े मुनियों ने भी कुछ गंभीर उद्देश्य की कल्पना करके मन शात रखा।
माघ वि. अष्टमी व्याख्यान के लिये आग्रह करके सेठ श्री दीपचंद देवचंद भाई ने श्री गच्छाधिपति श्री की सकल
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