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________________ विविध शासन प्रभावना युक्त समाचारों, सनातनियों, आर्य समाजियों, स्थानकवासियों, तेरापंथी तथा तीन थुई वाले के साथ सम्पन्न चर्चा विवाद के विवरणों को प्राप्त कर खुब आनन्दित हुए। खास करके महीदपुर चातुर्मास में आगम वाचन करके पैतीस पागमों को वांचने को बात जानकर अधिक आनन्दित हुई। समग्ररूप में जिस विशिष्ट प्राशय से पू.गच्छाधिपति श्री ने पूज्य श्री को मेवाड़ मालवा तरफ विचरने को भेजा वह आशय अपेक्षा से भी अधिक सफल होने से पूज्य श्री ने भगवती सूत्र के योगदान द्धारा पन्यासपदवी प्रदान करने की पूज्य गच्छाधिपति श्री ने भावना व्यक्त की । परन्तु पू. झवेर सागर जी म. श्री ने बताया कि " मुनिपद की अनुगुण आचरण तथा साधु के सत्ताईस गुणों को ठीक तरह से प्राप्त करने की पूरी तैयारी न होकर "खरपाखर भान न वेहे" अर्थात गधा हाथी के बख्तर को न उठा सके । अगर "खर पर अंबाड़ी न सोहे" इस सूक्तियों के आधार पर समस्त आगमों का अनुयोग कर सकने की वास्तविक योग्यता के प्रतीकरूप "अनुयोगाचार्य" पदवी से सम्बोधित पंडित पद के छोटे स्वरूप (पन्यासपद) के लिए मेरी पात्रता नहीं है।" जिससे मेरे में वैसी पात्रता नहीं होने पर भी उत्सृष्टापवाट २२४
SR No.006199
Book TitleSagar Ke Javaharat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaysagar
PublisherJain Shwetambar Murtipujak Sangh
Publication Year
Total Pages272
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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