________________
उदयपुर श्री संघ में भी पूज्य श्री की अपूर्व देशना शक्ति से धर्मोल्लास उत्तम प्रकट हुअा, मासखमण, इक्कीस, सोलह तथा पंद्रह की तपस्या ठीक प्रकार से हुई। अट्ठाइ की संख्या तो 150 से 200 ऊपर होने का जानने को मिलता है । सकल श्रीसंघ ने खूब उमंग भर कर पर्वाधिराज की आराधना पूज्य श्री की निश्रा में की।
आत्म शुद्धिकर महापवित्र श्री कल्पसूत्र के रात्रि जागरण हाथी के हौदे पर पधराकर पूज्य गुरुदेव के बांचने के लिए विदा करने की मंगलक्रिया तथा स्वप्न उतारने आदि के चढ़ावे से देव द्रव्य-ज्ञान द्रव्य में खूब ही वृद्धि हुई । पर्वाधिराज की आराधना उमंग भर कर हुई बाद में पूज्य श्री भा.सु. 8 के व्याख्यान में चैत्य परिपाटी के रहस्य को समझा कर भा. सु. 11 से उदयपुर के समस्त जिनालयों की प्रातः 7 बजे से 9 बजे तक दर्शन यात्रा प्रारम्भ कराई। आसोज सु. 3 के अन्तिम दिन आयड़ के महाराज संप्रति कालीन प्राचीन पांच जिनालयों की यात्रा प्रसंग में पूज्य श्री ने सकल श्री संघ के सामने श्रुतज्ञान की आराधना पालन करने के लिए ज्ञानाचार के आठ भेदों में से एक भेद उप प्रधान तप नामें आचार के पालने के लिए खूब ही पूरी गर्मिता बतलाई। श्रावक जीवन की नींव उपधानतप है तथा वर्तमान काल की अपेक्षा उपधान तप श्रावक जीवन का महान उच्चकोटी का तप है।
२०४