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वातावरण तथा उत्तम पदार्थो का स्वच्छा से त्याग करने को . तैयार दीक्षार्थियों का बहुत मानपूर्वक भक्ति करने वाले विवेकी पुण्यात्मा विशिष्ट सुन्दर वर्णगंध-रस-स्पर्श वाले उत्तम खान-पान, पहनने ओढ़ने तथा गहने-जेवरात आदि संसारी पदार्थों से भक्ति को अधिक मान करने तैयार हो तब दीक्षार्थी समझपूर्वक चढते वैराग्य के बल से मन को अच्छे लगने वाले संसारी पदार्थों को हलाहल विष से भी बढ़कर अनिष्ट समझकर उन सुन्दर उत्तम पदार्थो को भो "ना-ना" कहकर वारण करे निषेध करें।
भक्ति करने वाले जिस वस्तु का प्रसार करे तो यह त्याज्य है "यह नहीं चाहिए", यह उचित नहीं है " इत्यादि शब्दों से आन्तरिक हृदय के त्याग-वैराग्य के भावों को झलका कर सामने त्याग को बहुत मानपूर्वक संयम-धर्म के अनुमोदन का भाव जिसमें जगावे वह दक्षिार्थी करणानिषेध करने की प्रवृति जितका अपभ्श "दायणा' हुआ है। वह मात्र भोजन करने तथा बाहय बहुत मान के व्यवहार में रुढ़ होने लगा हो इत्यादि "
दीक्षार्थी बहिनों ने यह सुनकर अपनी भूमिका के प्रमाण में अभिनव नियम-पच्चकखाण, अभिग्रह इत्यादि पूज्य श्री के पास प्रतिदिन प्रातःकाल वासक्षेप डलवाने प्रावे
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