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________________ कर ली । " पूज्य श्री द्वारा दिये गये स्पष्टीकरण का उत्तर आर्य समाजी स्वामी दे न सके" तथा तबियत खराब का बहाना गढ़कर उदयपुर छोड़ गये । यह बात जतलाती है कि वास्तव में सत्यतत्व को स्वीकारने का नैतिक साहस उनमें नहीं था । केवल खुद की मुग्ध - जनता के सामने अधकचरे तर्कों से प्रसारित करने की वाकपटुता तथा शब्द- पंडिताई मात्र ही है । इस प्रकार पूज्यश्री का वि.सं. 1936 का उदयपुर का चातुर्मास उदयपुरके वयोवृद्ध बुजुर्ग पुरुष स्मारक रूप में याद करते हैं। अधिक रूप में यह कहते हैं-"यदि आर्यसमाजियों का जबड़ा तोड़ जवाब देने वाले पूज्यश्री झवेर सागर जो म. उस समय यहां नहीं होते तो आधा उदयपुर आर्य समाज की चंगुल में फंस जाता। इस प्रकार चातुर्मास के प्रारम्भ में हो शासन का जयजयकार बताने वाली इस घटना के होने से पूज्य श्री की अगाध विद्वता तथा अनेक शास्त्रों की भिज्ञता उदयपुर को आम जनता को होने से चातुर्मास की अवधि में पूज्य श्री के सम्पर्क का उत्तम लाभ जैनेतर प्रजा ने लिया । पू. म. श्री की मंगल प्रेरणा से विविध तपस्याओं की आराधना के साथ प्रभुशासन की महत्वपूर्ण संयुक्ति अनेक भाविक पुण्यात्मानों प्राप्त हुई। इस प्रकार यह चातुर्मास पूज्य श्री के श्री संघ को अत्यधिक भावोल्लास बढ़ाने १०६
SR No.006199
Book TitleSagar Ke Javaharat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaysagar
PublisherJain Shwetambar Murtipujak Sangh
Publication Year
Total Pages272
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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