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प्राकृतस्तोत्रप्रकाशः
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धणसत्यवाहतणओ-धण्णो पहुवीरदेसणं सोच्चा ॥ पव्वइओ तिव्वतवो-सासणनाहो समवसरणे ॥४४॥ सेणियनिवपमुहाणं-पुरओ दुक्करविहायगो धण्णो धण्णो संसी एवं-समया वेरग्गलंकरिओ॥ ४५ ॥ किच्चा विउलगिरीए-अणसणजोगं समाहिमरणाओ॥ सन्वट्ठसिद्धदेवो-जाओ तत्तो विदेहम्मि ॥ ४६॥ पाविस्सइ परमपयं-दुवालसविहं सुए तवं भणियं ॥ बज्झब्भंतरछक्कं-भावारिकिवाणसारिच्छं ॥ ४७ ॥ जसभसूरिसीसो-खेमरिसी पवरभिग्गहइतवं ॥ पकुणंतो विसहंतो-उवसग्गे देवयं पत्तो ॥ ४८ ॥ असुहज्झाणं जत्तो-वडइ णो जोगकरणपरिहाणी ॥ तं सुहतवं विहेयं-विहिणा परिवज्जियनियाणं ॥ ४९॥ परमं कारणमेयं-संजमसंसाहणे तवं वुत्तं ॥ गइया तेणं सुत्ते-समगं वरसंजमतवाइं ॥ ५० ॥ सिरिगोयमस्सरूवे-इह तवसा संजमेणमप्पाणं ॥ भावमाणे विहरइ-विवाहपण्णत्तिवयणमिणं ॥५१॥ निरसणभावो पढमो-ऊणोदरियत्ति वित्तिसंखेवो ॥ तणुकेसो रसचाओ-संलीणत्तं तवो बज्झो ॥५२॥