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________________ ३०८ श्री विजयपद्मसूरिविरचितः गिहवासद्दा सोलस-अड छउमत्थत्तभावमज्झम्मि॥ सोलस केवलिभावे-जीवियगणणा पहासस्स ॥५७॥ गेहे सोलस चरणे-वीसा चोआलिआ जुगे सत्ते॥ सव्वाउ असीइसमा-जंबूसामिस्स पज्जाओ ॥ ५८॥ पुण्णप्पहावकलियं-ललियं सुंदरगुणोहरयणेहिं ।। तमतिमिरविणासयरं-चारित्ताहूसणं धरमो ॥५९॥ नवपयसाहणसमए-अट्ठम घरवासरे चरित्तस्स ॥ संसाहणा विहेया-साहगमव्वेहि हरिसत्तो ॥६०॥ चारित्तपयवियारो-आगमनोआगमेहि कायव्वो ॥ उवओगबोहकलिओ-पढमो किरियस्सिओ बीओ ॥६१॥ निक्खेवचउक्त्तो-चारित्तपयस्स घजमीमंसा ॥ जस्सक्खा चारित्तं-तं भणियं नामचारित्तं ॥६२॥ चारित्तहरस्स सुहा-पडिमा ठवणाचरित्तमेवमिणं ॥ भावचारित्तनियाणं-उवओगविहीण किरियाओ ॥६३॥ तं दव्या चारित्तं-भावे णुवओगजुत्तकिरियाओ ॥ इच्छामि सया भंते !-भवे भवे भावचारित्तं ॥६४॥ चारित्तपयज्झाणं-अट्ठम दियहे मुया विहाअव्वं ॥ हत्तरिगुणप्पमाणा-काउस्सग्गाइ कायव्वं ॥६५ ॥
SR No.006174
Book TitleStotra Chintamanistatha Prakrit Stotra Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaypadmasuri
PublisherJain Granth Prakashak Sabha
Publication Year
Total Pages344
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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