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________________ ३०६ श्री विजयपद्मसूरिविरचितः इह संयमठाणाई - असंखलोयखपएसमाणाई || वृत्ताइ सुए देसा - पंचमगुणठाणगे विरई ॥ ३९ ॥ छट्ठे सव्वचरितं - बीयकसायक्खओवसमभावा ॥ देसविर परिणामो - तइयकसायक्खओवसमा ॥ ४० ॥ सव्वविरइपरिणामो - चारितं पंचहा पत्रयणम्मि ॥ सामाइयाइभेया- साहंते तित्थया देंते ॥ ४१ ॥ छट्टगुणद्वाणाओ - अनियहिं जाव पढमचारितं ॥ इय गुणठाणचक्के - छेओवट्ठावणीयमिणं ॥ ४२ ॥ परिहारविसुद्धीयं - छठे तह सत्तमे गुणहाणे ॥ दसमे चउत्थचरणं - चउगुणठाण हक्वायं ॥ ४३ ॥ पुज्जो वरचारिती - वणीमगोऽवि य मणे ठियं तं मे ॥ पणमंति वासवाई - चारिताराहगं समणं ॥ ४४ ॥ आईए जा पत्ती - सुया भावाण वावि ते चिच्चा || लाहो पुणोवि तेसिं-आगरिसो सेsविणायव्वो ॥४५॥ सहसपुहुत्तं देसा - चरणे सव्वव्वए सयपुहुत्तं ॥ एगभवावेकखाए - पहूहि पण्णत्तमाणमिगं ॥ ४६ ॥ सगदसभेया वृत्ता - चरणस्स खमाइभेयदसगमवि ॥ परमत्थाऽतगुणं भवाडवीसरणचारितं ॥ ४७ ॥
SR No.006174
Book TitleStotra Chintamanistatha Prakrit Stotra Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaypadmasuri
PublisherJain Granth Prakashak Sabha
Publication Year
Total Pages344
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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