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________________ ३०२ श्री विजयपद्मसूरिविरचितः पउमेणायरिएण-कयं पियंकरसमीसपढणढें ॥ अह दुण्णि करिस्सामो-चारित्ततवाण थुत्ताई ॥११०॥ ॥श्री सम्यक्चारित्रपदस्तोत्रम् ॥ ॥ आर्यावृत्तम् ॥ झाऊणं णेमिपहू-सीलहरे णेमिमूरिगुरुपाए । सम्म चारित्तपयं--थुणामि सपरोवया ॥ १ ॥ नरभवविसिट्ठसझं--भव्वपमोयप्पदायगं समयं ।। अच्छाइयनियसत्ति--प्पयासगं नममि चारित्तं ॥ २॥ रित्तीकरेइ पावे-बहुभवभमणज्जिए महटिइए ॥ जं सण्णाणविहेयं-भयामि तं सम्मचारित्तं ॥३॥ नरभवसुइसम्मत्तं-संजममिह पुण्णवीरिउल्लासो॥ अहियाहियपुण्णेहिं-कमसो पावंति भब्बनरा ॥४॥ तब्भवसिवपयगामी-साहित्ता तित्थयावि चारित्तं ॥ देंते विसिट्ठसिक्खं-कइया तुम्हाण परमपयं ॥५॥ णेणं जाणह तुम्भे-ता चरणाराहणा विसेसाओ।। तुब्भेहिं कायव्या-न तं विणा जं भवुच्छेओ ॥६॥ कम्माहिमंततुल्लं-संवेगाणंदवारिकूवनिहं ।। निव्वाणनिवत्थाणं-चारित्तं नममि हरिसेणं ॥ ७॥ सद्धम्मसुत्तहारो-रएइ नरजम्मपुण्णपासायं ॥ चरणधयं तस्सुप्पि-ठवेंति भव्वा नरा धण्णा ॥८॥
SR No.006174
Book TitleStotra Chintamanistatha Prakrit Stotra Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaypadmasuri
PublisherJain Granth Prakashak Sabha
Publication Year
Total Pages344
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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