________________
२९५
प्राकृतस्तोत्रप्रकाशः
आवस्सए विसेसे-सामाइयमुत्तविवरणसरूवे ॥ पंचविहं पण्णत्तं-गणहरपमुहेहि पुज्जेहिं ॥ ४० ॥ मइनाणं मुयनाणं-वरोहिमणपज्जवं च केवलियं ॥ सूराइयावि भणिया-पंचविहा लोयदित्तियरा ॥४१॥ नाणं पयासरूवं-सुयदिटुंताऽवि भासगं चेव ॥ नाणप्पयाससदा-एगट्ठा एव वुत्तसिणं ॥ ४२ ॥ मणधाऊ नाणत्थो-पंचिंदियमाणसुब्भवं नाणं ॥ विष्णेयं मइनाणं-सदत्थवियारणा भिण्णं ॥ ४३ ॥ आभिमिबोहियमेवं-नंदीमुत्ते पभासियं गुरुणा॥ तस्सेव परं नामं-भिण्णत्थतं न लेसाओ ॥४४॥ होज्जा जुग्गपएसे-ठियाण सद्दाइयाण परिबोहो ॥ मइनाणे तत्तत्थे-संववहारिज्ज पच्चक्खं ॥ ४५ ॥ वृत्तमिण मइनाणं-सम्मदिट्ठीण होज्ज सम्मत्ते ॥ अट्ठावीसइभेयं-नंदीसुत्ताइणिदेसा ॥ ४६॥ वंजणवग्गहभेया-करणचउक्का पभासिया चउरो ॥ हाज्ज ण मणनयणाणं-अपप्पयारिस्सहावाओ ॥४७॥ अत्थुग्गहिहावाया-पंचिंदियमाणसेहि जाअंते ॥ तह धारणियमईए-गणणा अडवीसभेयाणं ॥४८॥ इंदियमणसंजायं-सहत्यवियारणं कुणंतस्स ॥ जो बोहो सुयनाणं-चोदसहा वीसहा सुत्ते ॥ ४९ ॥