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________________ १४६ श्री विजयपद्मसूरिविरचितः णियलद्धीइ करेजा-अट्ठावयपव्वयस्स जो जत्तं ।। तम्मि भवे सो होजा-सिद्धो इय वीरवयणाओ ॥१८॥ विहिया जत्ता जेणं-विसिट भत्तिप्पमोयकलिएणं ॥ एवं सिवकयसमु-तं गणहरगोयमं वंदे ॥ १९ ॥ कत्तियवरसियपक्खे-पढमे दियहे पहायसमयम्मि ।। जो सव्वण्णु जाओ-तं गणहरगोयमं वंदे ॥ २० ॥ सिरिवीरपट्टगयणे-दिगयरमाणंददेसणापण्णं ॥ झाणाई यसहावं-गणहरसिरिगोयमं वंदे ॥ २१ ॥ बारससमपरियाओ-केवलिभावेण जस्स विक्खाओ॥ बाणवइवरिसमाणं-संपुण्णं जीवियं जस्स ॥२२॥ पाओवगमणभावे-मासियभत्तेण रायगिहणयरे ॥ संपण्णसिद्धिसंग-गणहरसिरिगोयमं वंदे ॥ २३ ॥ अमरणरिंदा णिच्च-जं पणमंति पहाणपुण्णपयं ॥ सो सिरिगोयमसामी-संघगिहे मंगलं कुज्जा ॥ २४ ॥ सुग्गहियनामधिजा-आयरिया जोगसुद्धिदित्तिहरा ॥ णामं जस्स पसत्थं-झाअंति लहन्ति सच्चसुहं ॥ २५ ॥ तं नत्थि भुवणमझे-सिज्ज्ञिज्जा जं न गोयमस्सरणा॥ सिरिगोयममप्पभवा-पण?पावा सरंति णरा ॥ २६ ॥ पण्णरसतावसपत्थ-प्पयाणसत्तं सुवण्णकयकमले ॥ सीहासणे निसणं-वंदे गुरुगोयमं विहिणा ।। २७ ।।
SR No.006174
Book TitleStotra Chintamanistatha Prakrit Stotra Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaypadmasuri
PublisherJain Granth Prakashak Sabha
Publication Year
Total Pages344
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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