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प्राकृतस्तोत्रप्रकाशः
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दव्वजिणो से वीरो - वीसा यरकालमाणदिव्वसुहं || पुप्फुत्तरे विमाणे - पाणयकापट्टिए पवरे ॥ ७ ॥ अणुहविय सुकपक्खे - आसाढे छहवासरे घण्णे | तम्हा चुओ समाणो - तिष्णाणिणिबद्ध जिणणामो ॥८॥ माहणकुंडग्गामे - सय वरिसाउस्स उसहदत्तस्स || गिहिणी देवाणंदा - तीए कुच्छिसि आयाओ ॥ ९ ॥ वासीइदिणाई जा - तत्थ ठियं वंदिऊण सक्किदे || हरिणेगमेसितियसं - कम्मबलच्छेरगं णच्चा || १०॥ आणवए तेग तओ - आसिणबहुले य तेरसीदिय हे ॥ काउं गभविणिमयं - तिसलाकुच्छिसि साहरिओ ॥ ११॥ जो चित्तमुपखे - जाओ सुहतेरसीदिणे पवरे ॥ दिक्खा जेगं गहिया - मग्गसिरे बहुलदसमीए । १२ ॥ वारसवासाइ तहा- तेरस पक्खे सुराइउवसग्गे || सहिअ खमाभावेणं-चरिअ तवं जंभियग्गामे ॥१३॥ गोदोहिआसणेणं-पहरति उज्जुवालियातिरे || हत्थुत्तरामुरिक्खे - णिज्जलछट्टप्पमो ॥ १४ ॥ झाणंतरियासमए - जेणं वइसाहसुद्धदसमीए || लद्धं केवलनाणं- तं वीरपहुं सया वंदे ।। १५ ।। तह मज्झिमपावाए - केवलिणिक्कारसीइ जेण वरं ॥ महसेणवणे तित्थं - पयट्टियं जोगखेमदयं ॥ १६॥