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प्राकृतस्तोत्रप्रकाशः
. ( आर्यावृत्तम् ) सम्मेयसेलसिहरे-काउस्सग्गासणेण सहसगणो । मासक्खवणतवेणं-णवमीए चित्तसियपक्खे ॥२६॥ चालीसलक्खपुर-प्पमिए पुण्णे य जीविए जेणं ॥ तइयभवे संपत्तं-परमपयं तं पहुं वंदे ॥ २७ ॥ ससिहयगयचंद मिए-वरिसे सियतेरसीइ वइसाहे ॥ कानजिसड्ढसुएण-सावय कल्लाणणामेणं ॥ २८॥ इन्भेणं कारविया-महुस्सवेणं पहूयधणवइणा ॥ जास पइट्टा रम्मा-तं सुमइपहुं सया वंदे ॥ २९ ॥ गुणणिहिगयचंदमिए-राहणउरवासिणा धणड्ढेणं ॥ दलिचंदस्स सुएण-सेटिगणेसेण सिहरंमि ॥ ३० ॥ चउमुहदेवपइट्ठा-परुस्सवेणं तरण कारविया ॥ तं चउमुहतित्थयरं-विणएण णमामि हं णिच्चं ॥३॥ जेणं धम्मिटेणं-बावण्णजिणालओ महारम्मो ॥ निम्मविओय विसालो-बाहिं सिरिरायणयरस्स ॥३२॥ सो केसरिसीहसुओ-दाणगुणी हत्थिसीहसेहिवरो॥ तस्स सुओ गुरुभत्तो-जाओ सेट्ठी मगणभाऊ ॥३३॥ तस्सुय दलपतभाउ-स्सरणटुं गेहिणीइ लच्छीए॥ गुरुणेमिसरिवयणा-पासाओ जत्थ णिम्मविओ ॥३४॥ तम्मि वरिण्णा सामा-परिसोहइ मूलनायगत्तेणं ॥ सिरिपासणाहपडिमा-तं वंदे भूरिभत्तीए ॥ ३५ ॥