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श्री विजयपद्मसूरिविरचितः पेसुण्णं घोरभयं-विदेसविकित्तिपीइपरिदहणं ॥ इय सिक्खा जस्स सुहा-तं केसरियापहुं वंदे ॥२५॥ इट्टत्थे रइकरणा-अरइविहाणा अणिभावेसुं ॥ किटकम्मबंधो-कुज्जा दुहंपि परिहारं ॥ २६ ॥ हेऊ अरइरुईगं-दीसइ णो किंपि वत्थुतत्तेणं ॥ इय सिक्खा जस्स सुहा-तं केसरियापहुं वंदे ॥२७॥ परपरिवाओ हेओ-गुणवीसासत्यकिनिधम्मलओ ॥ इय सिक्खा जस्स सुहा-तं केसरियापहुं वंदे ॥२८॥ मायामोसं सुयणा !-कुव्वंतु ण मुक्खमग्गपलिमंथं ॥ इय सिक्खा जस्स सुहा-तं केसरियापहुं वंदे ॥२९॥ मिच्छत्तं भवदुहयं-सव्वाणत्थप्पयं सया हेयं ॥ इय सिक्खा जस्स सुहा-तं केसरियापहुं वंदे ॥३०॥ पावाणं ठाणाइं-इय अट्ठारसविहाइ-हेयाइं ॥ इय सिक्खा जस्स सुहा-तं केसरियापहुं वंदे ॥३१॥ दुरियट्ठाणच्चायं-किच्चा णिव्वाणमग्गओ हुजा ॥ इय सिक्खा जस्स सुहा-तं केसरियापहुं वंदे ॥३२॥ सम्मत्तं भवभेयं-पसमाइनिमित्तजीवपरिणामो॥ इय सिक्खा जस्स सुहा-तं केसरियापहुं वंदे ॥३३॥ मोहनिरोहं नाणं-विरइफलं मुत्तिमग्गदीवणिहं ॥ इय सिक्खा जस्स सुहा-तं केसरियापहुं वंदे ॥३४॥