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________________ छह भीखनजी ने वि० सं० १८०८ मार्गशीर्ष कृष्णा १२ के दिन बगड़ी गांव में आचार्य रघुनाथजी के हाथों दीक्षा गहण कर ली। वे ज्ञान और विनय की आराधना में संलग्न हो गए। विरक्ति के भाव वृद्धिंगत होते रहे। उन्होंने आगमों का अनुशीलन प्रारंभ कर दिया। वे जिज्ञासावृत्ति से अपनी आशंकाओं को आचार्य रघुनाथजी के समक्ष रखते रहे और समाधान पाने का प्रयत्न करते रहे। उन्होंने अनेक बार आगमों का पारायण किया। उन्हें यह प्रतीत हुआ कि संघीय मुनियों का आचरण आगम वाणी के अनुसार नहीं हो रहा है । विचारों में उथल-पुथल होने लगी। उन्होंने गुरु से समाधान पाना चाहा, पर मन समाहित नहीं हुआ। गुरु भी उनकी सूक्ष्म मेधा से उत्पन्न जिज्ञासाओं को देख आश्चर्यचकित थे । उनमें वे भावी शासक का उज्ज्वल भविष्य देख रहे थे। मुनि भीखन के वैराग्य की उन पर छाप थी। वि० सं० १८१५ में राजनगर (मेवाड़) के श्रावक समुदाय ने मुनियों में आचार-विचार के अन्तराल को देख-समझ कर एक आन्दोलन किया। वे संघ से विमुख हो गए और उन्होंने वंदना-व्यवहार भी छोड़ दिया। आचार्य रघुनाथजी इस घटना से व्यथित हो गए और तब उन्होंने मुनि भिक्षु को राजनगर के श्रावकों को समाहित करने भेजा । मुनि भिक्षु राजनगर पहुंचे और अपनी तर्कप्रवण बुद्धि से उन्हें समाधान देकर संघ के अनुकूल बना डाला। उनके मन में असत्य समाधान के प्रति विद्रोह उठा। रात्री में मुनि भिक्षु । शीतज्वर से आक्रांत हुए। उस अवस्था में मन ही मन विचार-मंथन चलता रहा । विचारों की उथल-पुथल, आत्म-मंथन और किए गए असत्य अपलाप के प्रति विद्रोह ने सत्य की अभिव्यक्ति का मार्ग प्रशस्त कर दिया। सत्यसंलाप के संकल्प से ज्बर शांत हो गया। श्रावकों को यथार्थ से परिचित कराया। श्रावकों को प्रतिबुद्ध करने के साथ-साथ मुनि भिक्षु स्वयं प्रतिबुद्ध हो गए। राजनगर से वे आचार्य रघुनाथजी के पास आए। उन्हें विचारों की अवगति दी। जिज्ञासाएं प्रस्तुत की। जब समाधान नहीं मिला तब वि. सं. १८१७ में चैत्र शुक्ला नवमी को बगड़ी में संघ से संबंध-विच्छेद कर दिया। अब वे स्वतंत्र हो गए। उनके साथ अन्य १२ मुनि भी संघ से पृथक् हो गए। चारों ओर से विरोध होने लगा। मुनि भिक्षु को रोटी-पानी और आवास न देने का सामाजिक प्रतिबंध किया गया । देने वाले के लिए दंड निर्धारित किया गया। पांच वर्षों तक भरपेट भोजन नहीं मिला। परन्तु मुनि भिक्षु अपने संकल्प पर दृढ़ रहे। - जोधपुर नगर में एक दुकान में भाइयों को सामायिक अनुष्ठान करते देख दीवान फतेहसिंहजी ने उनसे वहां सामायिक करने के कारणों की पूछताछ की । उनको यथार्थ स्थिति की अवगति दी। उस समय दुकान में
SR No.006173
Book TitleBhikshu Mahakavyam Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni, Nagrajmuni, Dulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1998
Total Pages308
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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