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तेरहवां सर्ग
प्रतिपाद्य : जैनधर्म की तत्कालीन स्थितियों का चित्रण, धर्मप्रचार
में आने वाले नानाविध उपसर्ग, जनता को मूढता से निराश होकर तपोनुष्ठान में प्रवृत्त, मुनिद्वय द्वारा प्रबोध,
जनता का आकर्षण और तेरापंथ का स्थिरीकरण । .. श्लोक : १०८। छन्द : द्रुतविलम्बित ।