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ग्यारहवां सर्ग
प्रतिपाद्य : आचार्य रघुनाथजी से अलग होकर आचार्य भिक्षु ने प्रथम चतुर्मास केलवा (मेवाड़) में किया । अन्धेरी बोरी में मुनि भारमलजी के सर्प का उपसर्ग, भिक्षु का यक्ष से 'साक्षात्कार तथा जोधपुर में तेरापंथ का नामकरणः ॥ श्लोक : १५५
छन्द : उपजाति तथा वसन्ततिलका ।
श्लोक १ से ९२ तथा ११८ से १५५ तक उपजाति छन्द और ९३ से ११७ श्लोक तक वसन्ततिलका छन्द ।