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वर्ण्यम्
___आचार्य भिक्ष को अपने प्रचार-प्रसार में असाधारण सफलता मिलती गई। विरोध में तीव्रता आई । परन्तु आचार्य भिक्षु और उनके सहयोगी मुनिगण विरोध का डट कर सामना करते रहे। आचार्यश्री ने तत्कालीन साधुसंघ में व्याप्त रीतियों, प्रवृत्तियों की कटु आलोचना करते हुए अपने पक्ष को आगम के साक्ष्यों से प्रस्तुत किया। इस सर्ग में उसका संक्षिप्त लेखा-जोखा है।