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________________ १९. श्रीमि महाकाव्यम् फिर पत्नी ने कहा-चोर ताले तोड़कर आभूषण आदि निकाल रहा है। पति ने पूर्ववत् वही उत्तर दोहराया-हां, मैं जानता हूं। आखिरकार जब चोर गहने, आभूषण ले जाने लगा, तब पत्नी ने पुनः कहा-यह चोर धनमाल लेकर जा रहा है, अब तो कुछ करो। पर पति ने तो पूर्ववत् वही उत्तर दिया-हां मैं जानता हूं। पर प्रयत्न कुछ नहीं किया। तब पत्नी ने उलाहना देते हुए पति से कहा-सिर्फ जानता हूं, जानता हूं की रट लगाते हो पर क्रियान्विति के बिना इस जानने में क्या धरा है। क्या इस तरह जानने मात्र से सुरक्षा हो सकती है ? (वैसे ही केवल धर्म-कर्म को जानने वाला यदि उसे जीवन व्यवहार में नहीं उतारता है तो वह अपनी आत्मरक्षा नहीं कर सकता। ज्ञान और तदनुरूप क्रिया-दोनों का योग ही कार्य-साधक होता है।) १९७. नानातत्त्वावलोकाः कवलितकुकलाः कीलितान्तप्रशस्ताः, सिद्धान्तार्यप्रमूढा धवलधवलिता धीभिरौत्पातिकीभिः । सम्यग्दृज्ञानवृत्तः प्रसृमरसुरसैभिक्षुभिक्षप्रणीता, दृष्टान्ता विव्यदिव्याः सपदि कतिपया दर्शिता दिव्यदृष्ट्या ॥ नाना प्रकार के गम्भीर तत्त्वों को प्रगट करने वाले, कुत्सित मनोवृत्ति वाले व्यक्तियों के मन में छाई हुई दुर्भावना को समाप्त करने वाले, अपने आप में समाये हुए सन्निर्णयों से प्राप्त प्रशस्ति वाले, आगमार्थ के गाम्भीर्य से आप्लावित, सम्यग् दर्शन, ज्ञान और चारित्र की त्रिवेणी से वर्द्धमान सुरसता वाले, ऐसे उज्ज्वल-उज्ज्वलतर दिव्य दृष्टान्तों की निष्पत्ति आचार्य भिक्षु की विलक्षण औत्पत्तिकी बुद्धि का ही सुपरिणाम है। उन्हीं में से कतिपय दृष्टान्तों को दिव्यदृष्टि-रागद्वेष रहित वृत्ति से चयन कर प्रस्तुत किया गया है। श्री नाभेयजिनेन्द्रकारमकरोद्धर्मप्रतिष्ठा पुनर्, यः सत्यग्रहणापही सहनयैराचार्यभिक्षुर्महान् । तसिद्धान्तरतेन चाररचिते श्रीनत्यमल्लर्षिणा, पूतः पञ्चदशोऽत्र भिक्षुचरिते सर्गो बभूवानसौ॥ श्रीनत्थमल्लर्षिणा विरचिते श्रीभिक्षुमहाकाव्ये नानादृष्टान्तप्रबोधकनामा पञ्चदशः सर्गः
SR No.006173
Book TitleBhikshu Mahakavyam Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni, Nagrajmuni, Dulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1998
Total Pages308
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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