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पञ्चदशः सर्गः
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लोगों में बहुत भयंकर स्थिति बन गई। हाय-हाय करते हुए लोग बोलेबेचारी लड़की का क्या हाल हुआ ? बेचारी बारह वर्ष की अवस्था में ही विधवा हो गई। यह किस प्रकार दिन काटेगी? इस प्रकार लोग विलाप करने लगे। स्वामीजी बोले-लोग सोचते हैं कि ऐसा करने वाला उसकी दया कर रहा है, पर वास्तव में वह उस लड़की के कामभोग की वांछा कर रहा है। वे जानते हैं कि यदि वह लड़का जीवित रहा होता तो इसके दोचार बच्चे हो जाते। यह लड़की सुख का भोग करती, आनन्द में रहती। इस प्रकार सांसारिक मोह में मूढ़ व्यक्ति सोचते हैं, मानते हैं। वे परदुःख से दुःखित व्यक्ति अपने आपको परम दयालु मानते हैं। वे यह नहीं जानते कि लड़की कामभोग के सेवन से दुर्गति जाती। इसकी चिन्ता भी उन्हें नहीं है और वह लड़का मर कर किस गति में गया है, यह भी उन्हें चिन्ता नहीं है। तत्त्वज्ञ पुरुष ऐसे सांसारिक मोह में नहीं फंसते । वे हर्ष या शोक से विलग रहकर उस लडकी की धर्माराधना में सहायक होते हैं।'
१६७. मिथ्यादोषनिदर्शनेन भृगुना सद्भ्यः सुतौ भापितो,
प्राग भग्नौ मुनितस्ततो भृगुसुतावन्वीक्ष्य सन्मार्गगौ। द्वेषाद्वेषधरस्तथा सुमुनितो व्युग्राहितास्ते ततः, सत्सङ्गः प्रविदन्ति तांश्च वितथास्तातं यथा भार्गवौ ॥
भृगु पुरोहित ने साधुओं के झूठे दोष दिखलाकर अपने पुत्रों को साधुओं से भयभीत कर दिया। पहले तो वे भिड़के हुए होने के कारण साधुओं को देखते ही भाग खड़े हुए, पर जब उन्होंने गवेषणा की तो यथार्थ को जानकर सन्मार्गगामी बन गये। इसी प्रकार द्वेषवश विरोधियों ने कई व्यक्तियों को सत्साधुओं से (भिक्षुस्वामी से) भड़का दिया, पर जब उन्होंने उन उत्तम पुरुषों से सम्पर्क साधा, तो उन भिडकाने वाले लोगों को झूठा समझा, जैसे कि अन्वेषणा के बाद भृगुपुत्रों ने अपने मातापिता को।
१६८. राजाध्वेव निरन्तराऽभयमयः स्वेष्टास्पवप्रेषक:,
सन्मार्गः सरलोऽवरोधरहितः श्रीवीतरागप्रमोः। उन्मार्गः पशुवम॑वद् भ्रमकरः पाषण्डिनां प्रागृजुः, पश्चाद् भ्रामक एवमेव सदयो ह्यादावसानेऽन्यथा ॥
स्वामीजी ने कुमार्ग और सुमार्ग पर दृष्टान्त दिया-भगवान् के मार्ग और पाखण्डियों के मार्ग की पहचान कैसे करें ? भगवान् का मार्ग तो.
१. भिदृ० २५७ ।