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________________ पञ्चदशः सर्गः ११७ उसकी खबर तब स्वामीजी ने कहा- 'कोई परदेश में मर गया, आने पर चिंता तो बहुत लोग करते हैं पर लंबी कंचुली तो एक उसकी पत्नी ही पहनती है । ' ४५. चित्तं वस्तु च पात्रमित्यविकलं त्रिभ्यः शुभेभ्यो हि यत् । तद्दानं सुकृतं दयाऽपि च तथा न्यूने न तद् व्यत्यये । खण्डाऽऽज्योत्तमपिष्टकाऽभवनतो गोमूत्रविड़ भूसुताक्षेपाद् यद्यदसत्त्वतः किमु कदा सञ्जायते सीरकः ॥ मान दानधर्म और दयाधर्म के स्वरूप को बतलाते हुए स्वामीजी ने कहा - चित्त, वस्तु और पात्र - तीनों के अविकल शुभ योग से ही दानधर्म वदयाधर्म की निष्पत्ति हो सकती है। तीनों में से एक के अभाव में अथवा उसके स्थान में किसी दूसरे विलोम पदार्थ के प्रक्षेप से निष्पत्ति संभव नहीं जैसे - हलुए की निष्पत्ति के तीन घटक होते हैं—चीनी, घी और आटा । घृत व आटा है पर चीनी नहीं है तो क्या चीनी के स्थान में धूल मिला देने से हलुआ बन सकता है ? ऐसे ही कहीं पर चीनी व आटा है पर घृत नहीं है, तो क्या घृत के स्थान पर गोमूत्र के योग से हलुआ बन सकता है ? ऐसे ही क्या आटे के स्थान पर गोबर डालने से भी हलुआ बन सकता है ? नहीं । चीनी, घृत और आटे के अविकल योग से ही हलुआ बन सकता है, अन्यथा नहीं । ठीक ऐसे ही चित्त, वस्तु और पात्र - इन तीनों के अविकल शुभ योग से ही दानधर्म की निष्पत्ति सम्भव है, अन्यथा नहीं । ४६. मंत्री भिक्षुमवोचत प्रमुदितः प्रश्नोत्तरेभ्यो वरं, गेही स्याद्यदि वा तदा तु कतिचित् साम्राज्यसञ्चालकः । किं तेनाह मुनिर्ययात्मपतनं बुद्धिस्तु शस्या हि सा, यज्जैनेन्द्रमतानुशीलनपरा स्वात्मार्थ संसाधिनी ॥ स्वामीजी ने सिरियारी में चतुर्मास किया । जोधपुर नरेश विजयसिंहजी नाथद्वारा जा रहे थे । वर्षा के कारण सिरियारी में ठहरे । उनके कुछ उच्च अधिकारी वहां स्वामीजी के दर्शन करने आएं और प्रश्न पूछने लगे । पहले मुर्गी हुई या अंडा ? पहले धान हुआ या अहरन ? पहले बाप हुआ या बेटा ? इत्यादि अनेक प्रश्नों के युक्तिसंगत उत्तर स्वामीजी ने दिए। तब वे अधिकारी प्रसन्न होकर बोले- 'ये प्रश्न हमने बहुत स्थानों पर पूछे, पर ऐसे १. भिदृ० १७ २. यद् यद् असत्त्वतः- क्रमशः तत् तत् स्थाने - यथा खंडस्य स्थाने भूसुता, घृतस्थाने गोमूत्र, पिष्टकस्य स्थाने गोविड् ।
SR No.006173
Book TitleBhikshu Mahakavyam Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni, Nagrajmuni, Dulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1998
Total Pages308
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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