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________________ १.. श्रीभिक्षुमहाकाव्यम् कुंथुआ दिखाओ।' तब उसने पूछा- 'तुम्हे हाथी और पर्वत दिखाई देते हैं या नहीं ?' - तब वह बोला-'हाथी और पर्वत तो मुझे दिखाई नहीं देते।' तब उसने कहा-'हाथी भी तुम्हें दिखाई नहीं देता, तो चींटी और कुंथुआ कैसे दिखाई देगा?' __ इसी प्रकार किसी को जीव खिलाने में पाप होता है, उसे भी तुम नहीं जानते, तो फिर प्रतिमाधारी को अव्रत सेवन कराने में पाप होता है, यह मान्यता तुम्हारे हृदय में कैसे पैठ पाएगी? यह चर्चा तो बहुत सूक्ष्म है। पहले तात्त्विक ज्ञान करना चाहिए, फिर गहरी चर्चा की जा सकती है।" ११. षटकायाऽसुमतां च खादनतया कि स्यावघं चेत्तदा, भारीमालमुनि जगाद लिखतात् पानीयपानेऽपि तत् । उक्तं तन्मयका कदेति निजगोऽविज्ञोऽववत्तं प्रति, षटकायेषु समागतं किमु न वा नीरं च भिक्षुर्जगो॥ पीपाड़ की घटना है । अन्य सम्प्रदाय का श्रावक 'मालजी' स्वामीजी से चर्चा कर रहा था। __ स्वामीजी ने पूछा-'मालजी ! छहकाय के जीवों को खाने से क्या होता है ?' तब उसने कहा-'पाप होता है।' फिर स्वामीजी ने पूछा-'छहकाय के जीवों को खिलाने से क्या होता है ?' उसने कहा-'पाप होता है।' तब स्वामीजी बोले-'भारमलजी ! स्याही तैयार कर लिख लोमालजी पानी पिलाने में पाप कहता है।' तब मालजी तेजस्वर में बोलने लगा-'मैंने पानी पिलाने में पाप कब कहा ?' तब स्वामीजी बोले-'पानी छह काय के भीतर है या बाहर ?' तब वह बोला-'है, है और है । पर मत लिखना, मत लिखना।' इस प्रकार वह हतप्रभ होकर वहां से चला गया।' १. भिदृ०, २०७। २. वही, २०० ।
SR No.006173
Book TitleBhikshu Mahakavyam Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni, Nagrajmuni, Dulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1998
Total Pages308
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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