SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 115
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चतुर्दशः सर्गः ८९ हे भव्यो ! कहीं-कहीं जिनमत के सदृश अन्यान्य मतों में भी किञ्चित् सत्य पाया जाता है, पर तत्त्वदृष्टि से वह सत्य नहीं है। क्योंकि अन्यान्य मतों की प्रकृति विकारपूर्वक एवं दुर्णयपूर्वक होती है। जैसे बाह्य दृष्टि से सज्जन और दुर्जन व्यक्ति का मिष्टालाप सदृश होने पर भी क्या दोनों के सद्-असद् अन्तःकरण से वह महान् भेद वाला नहीं होता? ६०. पर: कश्चिद् ब्रह्मप्रभृतिधुरिधौरेयक इव, भ्रमत्येकान्तेऽन्यो नियतिमुखतो मोहमथितः । अनात्मकानन्दी पर इह महानास्तिकमतिजिनान्येषामित्थं वितथकुदृशाः सर्वविधयः ॥ इस संसार में कुछेक ब्रह्म आदि की धुरि पर धौरेय (बैल) की तरह घूमते हैं, कुछेक मोह से मथित नियति पर विश्वास करते हैं, कोई एकान्तवादी है और कोई महानास्तिकवादी अर्थात् अनात्मवादी है। इस प्रकार अन्य दर्शनों के सभी विधि-विधान मिथ्यादृष्टि पूर्वक ही हैं । ६१. महामोहान मूलाद वितथमतिभिभिन्नमतिभि बहिवृष्ट्या दृधान्यऽनपशदशास्त्रांणि बहुशः। ततस्तान्यहद्भिः सुकृतभुवि मिथ्याश्रुतपदैनियुक्तान्युक्तानि प्रकृतिगतदोषापितदृशा ॥ अन्यान्य दर्शनों के शास्त्र महामोहमूलक एवं मिथ्यादृष्टिपूर्वक रचे गए हैं । वे बाह्यदृष्टि से उत्तम लगते हैं । अर्हत् ने उनके प्रकृतिगत दोषों पर दृष्टिपात कर धर्ममार्ग में उनके शास्त्रों को मिथ्याश्रुत कहा है। ६२. स्वरूपे हेतौ वा भिवऽभिदुदये स्वास्वविधिषु, विपर्यासोऽवश्यं कथमपि कथं चापरमते। अतो बाह्याकारजिनवरमताभासकमपि, न सम्यक्तत्त्वात्तत् कथनरचनाशास्त्रमननम् ॥ जैनेतर दर्शनों में यत्कथंचिद् विपर्यास प्राप्त होता ही है। तत्त्व के स्वरूप में या उसकी सिद्धि के हेतुओं में कहीं भेद और कहीं अभेद दृग्गोचर होता है। अपनी-अपनी विधियों में भी विसंगति प्रतीत होती है। वे मत बाह्य आकार-प्रकार से जिनमत का आभास देते हैं, पर सम्यक् तत्त्व पर आधारित न होने के कारण उन मतों का कथन, रचना और शास्त्र-मनन भी विपर्यास से मुक्त नहीं होता।
SR No.006173
Book TitleBhikshu Mahakavyam Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni, Nagrajmuni, Dulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1998
Total Pages308
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy