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(4) निस्सेसाए - मोक्ष प्राप्ति का कारण। (5) अनुगमिताए - भवोभव में साथ चलने वाला।
साधु वन्दन का फल तो मोक्ष बतलाया है, पर मूर्ति पूजा का फल किसी सूत्र में मोक्ष का कारण बतलाया हो तो आप मूल सूत्र का पाठ बतलावें।
उ. - सूत्र पाठ तो हम बतला ही देंगे पर जरा हृदय में विचार तो करें कि साधु को वन्दन करना मोक्ष का कारण है। तब परमेश्वर की मूर्ति पूजा में तो नमोत्थुणं आदि पाठों से तीर्थंकरों को वन्दन किया जाता है क्या साधुओं को वन्दन जितना भी लाभ तीर्थंकरों के वन्दन पूजन में नहीं है? धन्य है आपकी बुद्धि को! ___प्र. - हो या न हो यदि सूत्रों में पाठ हो तो बतलाईये? .. - उ. - सूत्र श्री रायप्पसेणीजी में मूर्ति पूजा का फल इस प्रकार बतलाया है कि
(1) हियाए- हित का कारण। (2) सुहाए - सुख का कारण। (3) खमाए - कल्याण का कारण। (4) निस्सेसाए - मोक्ष का कारण। (5) अनुगमिताए - भवोभव साथ में।
इसी प्रकार आचारांग सूत्र में संयम पालने का फल भी पूर्वोक्त पांचों पाठ से यावत् मोक्ष प्राप्त होना बतलाया है। इस पर साधारण बुद्धि वाला भी विचार कर सकता है कि वन्दन पूजन और संयम का फल यावत् मोक्ष होना सूत्रों में बतलाया है, जिसमें वन्दन और संयम को मानना और पूजा को नहीं मानना सिवाय अभिनिवेश के और क्या हो सकता है?
प्र. - यह तो केवल फल बतलाया है, पर किसी श्रावक ने प्रतिमा पूजी हो तो 32 सूत्रों का मूल पाठ बतलाओ।
उ. - ज्ञाता सूत्र के 16वें अध्ययन में महासती द्रौपदी ने सत्तरह प्रकार से पूजा की थी ऐसा मूल पाठ है। आज से 2200 वर्ष पूर्व महाराजा संप्रति ने सवा लाख जिनमंदिर बनाए थे। (26