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________________ (2) भगवान के दर्शन करने से दर्शनावरणीय कर्म का नाश । (3) प्राण भूत जीव सत्व की करुणा से असातावेदनीय का क्षय । ( 4 ) अरिहन्तों के गुणों का या सिद्धों के गुणों का स्मरण करने से सम्यग्दर्शन की प्राप्ति और मोहनीय कर्म का क्षय होता है । (5) प्रभु पूजा में तल्लीन और शुभाऽध्यवसाय से उसी भव में मोक्षप्राप्ति होती है । यदि ऐसा न हो तो शुभ गति का आयुष्य बन्ध कर क्रमश: ( भवान्तर में ) मोक्ष की प्राप्ति अवश्य होती है । 1 ( 6 ) मूर्ति पूजा में अरिहन्तादि का नाम लेने से अशुभ नाम कर्म का नाश । (7) अरिहन्तादि का वन्दन या पूजा करने से नीच गौत्र कर्म का क्षय । (8) मूर्ति पूजा से शक्ति का सदुपयोग और द्रव्यादि का अर्पण करना अन्तराय कर्म को दूर कर देता है। महेरबान ! परमात्मा की पूजा करने से क्रमशः आठ कर्मों की देश व सर्व से निर्जरा होती है। मूर्ति पूजा का आनन्द तो जो लोग पूर्ण भावभक्ति और श्रद्धापूर्वक करते हैं वे ही जानते हैं। जिनके सामने आज 500 वर्षों से विरोध चल रहा है, अनेक कुयुक्तिआं लगाई जा रही हैं पर जिनकी आत्मा जिन पूजा में रंग गयी है उनका एक प्रदेश भी चलायमान नहीं होता है। समझेन । प्र. यह समझ में नहीं आता है कि अष्टमी चतुर्दशी जैसी पर्व तिथियों से श्रावक लोग हरी वनस्पति खाने का त्याग करते हैं। जब भगवान को वे फल फूल कैसे चढ़ा सकते हैं? उ. यह तो आपके समझ में आ सकता है कि अष्टमी चतुर्दशी के उपवास (खाने का त्याग ) करने वाले के घर पर आये हुए साधुओं को भिक्षा दे सकते हैं और उनको पुण्य भी होता है। जब आप खाने का त्याग करने पर भी दूसरों को खिलाने में पुण्य समझते हैं तो श्रावकों को पुष्पादि से पूजा करने में लाभ क्यों नहीं है ? 1 प्र. साधुओं को तो फाक अचित्त आहार देने में पुण्य है, पर. भगवान को तो पुष्पादि सचित्त पदार्थ चढ़ाया जाता है और उसमें हिंसा अवश्य होती है ? भूल किसी को बतानी भी हो तो प्रेम से एकांत में कहो । ' (24
SR No.006167
Book TitleJain Dharm Me Prabhu Darshan Pujan Mandirki Manyata Thi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarmuni
PublisherJain S M Sangh Malwad
Publication Year
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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