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________________ शील ८. ६१ सम्यक्त्व सहित ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तप के आचरण से चारित्रशुद्धि को प्राप्त जीवों का परिनिर्वाण होगा। ७. सीलगुणमंडिदाणं देवा भवियाण वल्लहा होति । सुदपारयपउरा णं दुस्सीला अप्पिला लोए ।। (शी० पा० १७ ) जो भव्य प्राणी शील और गुणों से सम्पन्न होते हैं वे देवताओं के प्रिय होते हैं, पर जो अनेक श्रुतपारगामी होने पर भी दुःशील होते हैं वे लोक में तुच्छ गिने जाते हैं। ८. सीलं रक्खंताणं दंसणसुद्वाण दिढचरित्ताणं । अस्थि धुवं णिव्वाणं विसएसु विरतचित्ताणं ।। (शी० पा० १२ ) जिनका चित्त विषयों से विरक्त है और जो शील की रक्षा करते हैं, उन दर्शन - विशुद्ध और चरित्र में दृढ़ मनुष्यों को अवश्य ही निर्वाण की प्राप्ति होती है। ६. जइ विसयलोलएहिं णाणीहि हविज्ज साहिदो मोक्खो । तो सो सुरतपुत्तो दसपुव्वीओ वि किं गदो नरयं । । (शी० पा० ३०) यदि विषयलोलुप ज्ञानी द्वारा मोक्ष साध्य होता तो दशपूर्व का ज्ञानी सात्यकी - पुत्र रुद्र नरक में क्यों गया ? १०. जइ णाणेण विसोहो सीलेण विणा बुहेहिं णिद्दिट्ठो | दसपुव्वियस्स य भावो ण किं पुण णिम्मलो जादो । । (शी० पा० ३१) यदि प्रबुद्ध मनुष्यों ने शील के बिना ज्ञान से भावों की विशुद्धी कही होती तो दश-पूर्व के ज्ञाता रुद्र का भाव निर्मल क्यों नहीं हुआ ? २. शील- महिमा १. रूपसिरिगप्पिदाणं जुव्वणलावण्णकंतिकलिदाणं । सीलगुणवज्जिदाणं णिरत्थयं माणुस जम्म ।। (शी० पा० १५) जो यौवन, लावण्य और कांति से सुशोभित है, रूप और लक्ष्मी से गर्वित है, पर - गुण से रहित है उन पुरुषों का मनुष्य जन्म निरर्थक है। २. सव्वे वि य परिहीणा रूवविरूवा वि वदिदसुवया वि । सीलं जेसु सुसीलं सुजीविदं माणुस तेसिं । । (शी० पा० १८ ) जो प्राणियों में सबसे हीन हैं, रूप से कुरूप हैं तथा वय से अत्यन्त पतित-गलित हैं, पर जिनमें सुन्दर शील है, उनका मनुष्य जीवन सुजीवित है। ३ जीवदया दम सच्चं अचोरियं बंभचेरसंतोसे । सम्मद्दंसण णाणं तओ य सीलस्स परिवारो ।। (शी० पा० १६)
SR No.006166
Book TitleMahavir Vani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Rampuriya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1997
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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