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________________ ११. विजय - पथ ५. णाणोवओगरहिदेण ण सक्को चित्तणिग्गहो काउं । गाणं अंकुसभूदं मत्तस्स हु चित्तहत्थिस्स ।। (भग० आ० ७६० ) ज्ञानोपयोग रहित मनुष्य के द्वारा चित्त का निग्रह करना संभव नहीं । उन्मत्त चित्तरूपी हाथी के लिए ज्ञान अंकुश के समान है। ६. जह चंडो वणहत्थी उद्दामो णयररायमग्गम्मि । तिक्खकुसेण धरिओ णरेण दिढसत्तिजुत्तेण ।। तह चंडो मणहत्थी उद्दामो विषयरायमग्गम्मि । णाणंकुसेण धरिओ रुद्धो जह मत्तहत्थिव्व ।। (मूल०८ : १०६-११०) जैसे बंधन से छूटा हुआ नगर के राजमार्ग पर चलता हुआ प्रचंड वन हस्ती दृढ़ शक्ति युक्त मनुष्य द्वारा तीक्ष्ण अंकुश से वश में किया जाता है, उसी तरह प्रचंड मन रूपी उद्दाम - स्वच्छंद हाथी विषय रूपी राजमार्ग पर चलता हुआ ज्ञानरूपी अंकुश से रोका और वश में किया जाता है। ७. विज़्ज़ा जहा पिसायं सुट्टु पउत्ता करेदि पुरिसवसं । णाणं हिदयपिसायं सुट्टु पउत्ता करेदि पुरिसवसं । । ७५ ८. (भग० आ० ७६१) जैसे अच्छी तरह प्रयुक्त विद्या पिशाच को मनुष्य के वश मे ला देती है, वैसे ही अच्छी तरह प्रयुक्त ज्ञान मनरूपी पिशाच को मनुष्य के वश में कर देता है। आरण्णवो वि मत्तो हत्थी णियमिज्जदे वरत्ताए । जह तह णियमिज्जदि सो णाणवरत्ताए मणहत्थी । । (भग० आ० ७६३) जैसे जंगली हाथी उन्मत्त वरत्रा (हाथी को बाँधने की साँकल) से वश में कर लिया जाता है, वैसे ही मन रूपी हाथी ज्ञान रूपी वरत्रा से वश में कर लिया जाता है। ६. वादुब्भामो व मणो परिधावइ अठ्ठिदं तह समंता । सिग्घं च जाइ दूरंपि मणो परमाणुदव्वं वा ।। (भग० आ० १३४) वेग से बहनेवाली वायु की तरह मन कहीं भी स्थिर नहीं रहता हुआ चारों ओर दौड़ता रहता है। परमाणु द्रव्य की तरह मन बड़ी शीघ्रता से अति दूर चला जाता है। १०. अंधलयबहिरमूवो व्व मणो लहुमेव विप्पणासेइ । दुक्खो य पडिणियत्तेदुं जो गिरिसरिदसोदं वा ।। (भग० आ० १३५ )
SR No.006166
Book TitleMahavir Vani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Rampuriya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1997
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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