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देवकुमार उस समय अपनी माता से मिलकर अवंती आया ही था । सारी नगरी में महामंत्री की चुनौती की बात फैल गई। सर्वत्र उसकी चर्चा होने लगी ।
६६. मूंछ कट गई
सभी लोगों को आश्चर्य हो रहा था कि चोर तीन दिनों के भीतर महामंत्री के भवन में कैसे प्रवेश कर पाएगा ? और यदि चोर स्वर्णथाल सहित उस नीलम की मुक्कामाला को उठाने नहीं आएगा, तो उसकी बुद्धि का दीवाला निकल जाएगा । महामंत्री ने बुद्धि का दांवपेच लड़ाया है। देखें, क्या परिणाम आता है ?
देवकुमार को यह चुनौती कुछ भारी लग रही थी। उसे पूर्ण रूप से यह ज्ञात नहीं था कि जब वह चोरी करने निकलता है और पुन: अपने निवास स्थल पर पहुंचता है, तब तक माता के कड़े के प्रभाव से वह अदृश्य रहता है। चोरी का निमित्त न होने पर वह सबको दिखाई देता है। वह मात्र यही जानता था कि कड़े के प्रभाव से वह किसी की पकड़ में नहीं आता। उसने महामंत्री को चकमा देने का निर्णय कर लिया।
उसने पहले जनता का ध्यान अन्यत्र केन्द्रित करने के लिए एक कोट्याधिपति सेठ के वहां मूल्यवान् रत्नों की चोरी की। उसने सेठ के धन-भंडार सर्वहर नाम अंकित कर एक पत्र भी रख दिया ।
दूसरे दिन उसने राज्य के महाबलाधिकृत के भवन से अलंकारों की पेटी चुरा ली। उसके भंडार में भी सर्वहर नामांकित ताड़पत्र चमक रहा था। महाबलाधिकृत के भवन में चोरी हो, यह मालव राज्य के रक्षातंत्र के लिए लज्जास्पद बात थी।
तीसरे दिन रक्षा की व्यवस्था और कड़ी कर दी गई। महामंत्री की अकुलाहट भी बढ़ चुकी थी। उनके मुख्य खंड में एक त्रिपदी का स्वर्णथाल रखा हुआ था और उसमें नीलम की माला चमक रही थी। महामंत्री भवन छोड़कर कहीं आतेजाते नहीं थे । वे निरन्तर चोर की ताक में रहते, क्योंकि यदि चोर पकड़ में न आया, तो महाराजा की कीर्ति पर धब्बा लग जाने का भय उन्हें सता रहा था । वे राजसभा में कुछ समय के लिए अवश्य जाते थे ।
तीसरे दिन वे भवन का कार्य निबटाकर एक रथ में बैठकर भवन से बाहर निकले, उसी समय एक नौजवान अश्वारोही उनके रथ के सामने आया और रथ को रोकने की प्रार्थना करते हुए बोला- 'महामंत्री की जय हो ! राजराजेश्वर स्वयं आपके यहां पधार रहे हैं । '
'ओह ! किन्तु मैं तो वहीं आ रहा था । '
वीर विक्रमादित्य ३७७