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भिन्न-भिन्न प्रकार से बातें कर रहे थे। सुनी हुई बातें चलते-चलते समृद्ध होती जाती हैं और बात का बतंगड़ बन जाता है। कुछ लोग कह रहे थे-चोर ने एक ही रात में दो स्थानों पर सेंध लगाई-नगरसेठ के घर और राजभवन में। राजभवन से वह चोर नौलखा हार लेकर चंपत हो गया।
देवकुमार बातें सुन-सुनकर मन-ही-मन हंस रहा था। सभी प्रकार की बातें सुनकर वह नगरी से दो-चार वस्तुएं खरीदकर अपने निवासस्थान पर आया। भोजन आदि से निवृत्त होकर वह अपनी मां सुकुमारी से मिलने विक्रमगढ़ की ओर रवाना हो गया।
उसने मां से सारी बात कही। मां का आशीर्वाद प्राप्त कर वह पुन: अपने स्थान पर चला गया।
दूसरे दिन एक सेठ के भवन से पांच लाख स्वर्ण मुद्राओं की चोरी हो गई।
तीसरे दिन एक धनाढ्य सार्थवाह के कोषागार से सात बहुमूल्य रत्न गायब हो गए।
चौथे दिन अवंती के प्रसिद्ध जौहरी के घर से रत्नजटित आभूषणों की चोरी हो गई।
पांचवे दिन एक बनजारे के पांच मंजिल वाले मकान से नवलखा हार गायब हो गया।
पांच दिनों में पांच चोरियां। जनता में हाहाकार व्याप्त हो गया। नगररक्षक की बुद्धि चकरा गई। वीर विक्रम भी असमंजस में पड़ गए।
पांच-पांच चोरियां होने के पश्चात् नगरी के मुख्य द्वार को रात्रि के प्रथम प्रहर में बंद कर देने की घोषणा हो गई।
देवकुमार दो-तीन दिन तक मां सुकुमारी के पास आराम से रहने का निर्णय कर विक्रमगढ़ की ओर रवाना हो गया।
६५. राजभवन में चोरी तीन दिन तक मां के पास रहकर देवकुमार अवंती आ गया। उसको देखते ही माली प्रसन्न होकर बोला-'महाराज! इतने दिन कहां थे?'
'अरे, मैं पास वाले एक गांव में चला गया था। यहां के क्या हाल-चाल हैं?'
'महाराज! कोई एक चोर आया है और वह धड़ल्ले से चोरियां कर रहा है। गरीबों के घरों में वह नहीं जाता। वह धनवानों, धनकुबेरों के यहां चोरी करता है।
वीर विक्रमादित्य ३५१