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________________ पेटी पर बैठते हुए बोला-'प्रिये! आज का आनन्द! आज की मस्ती ! आज की रात!' बीच में ही मंजरी बोल उठी– 'पन्द्रह दिनों के वियोग से तो अच्छा है कि हम यहां से कहीं भाग चलें।' ज्ञानचन्द्र ने मुस्कराते हुए कहा-'प्रिये! महाराज विक्रमादित्य के हाथ बहुत लम्बे हैं। यदि हम अचानक पलायन कर जाएंगे तो उन्हें संदेह होगा और वे हमें पकड़ लेंगे। एक बात है कि अपना यह गुप्त प्रेम यहां आनन्द से क्रीड़ा कर सकता है। तुम्हारे और मेरे गौरव की भी रक्षा होती है। मुझे मेरे माता-पिता, पत्नी और बालकों को छोड़कर जाना भी उचित नहीं है।' मंजरी पेटी के पास आयी और अन्तिम चुम्बनदान देकर उसने ज्ञानचन्द्र के हाथ में एक माला दी। ज्ञानचन्द्र को लेकर पेटी आकाश में उड़ गई। जब तक पेटी आंखों से ओझल नहीं हो गई, तब तक मंजरी उस ओर देखती रही। कुछ ही क्षणों में पेटी कलिका की छत पर आ पहुंची। उसी क्षण कलिका ऊपर आयी और ज्ञानचन्द्र के हाथ में से पिच्छी लेती हुई बोली- 'मंत्रीश्वर! आज तो बहुत विलम्ब किया?' "देवी! परकीया प्रेमिका का प्रेम अनोखा होता है। किन्तु तुम्हारी कृपा में कुछ न्यूनता रह जाती है। यदि तुम मुझे वहां सप्ताह में दो बार भेज सको, तो बहुत आनन्द आएगा। तुम जो चाहोगी, वह तुम्हें देता रहूंगा।' फिर ज्ञानचन्द्र ने मदनमंजरी से प्राप्त मुक्तामाला को कलिका के हाथों में रखते हुए कहा- 'यह माला बहुत मूल्यवान है।' ____ 'मैं धन्य हई।' कहती हुई कलिका ने वह माला ले ली। ज्ञानचन्द्र कलिका से विदाई लेकर चला। कलिका उसे भवन के दरवाजे तक पहुंचाने गई। फिर वह छत पर पेटी में से विक्रम को बाहर निकालकर बोली'महाराज! स्त्री-चरित्र देख लिया?' विक्रम ने कहा- 'देवी ! मुझे कल्पना भी नहीं थी कि मेरी एक पत्नी ऐसी चरित्रहीन है। अब तुम मुझे इस बात का उत्तर दो।' 'महाराज ! मैंने आपके मन की बात जान ली है, किन्तु आप अपनी अन्य पचास रानियों के प्रति किसी भी प्रकार का संशय न रखें । अन्य रानियां पवित्र हैं और पातिव्रत धर्म को पालने वाली हैं।' __ 'परन्तु देवी! मैं प्रत्येक रानी को प्रसन्न रखता हूं। फिर भी यह कैसे हुआ? मंत्री ज्ञानचन्द्र अवस्था में मेरे से बड़ा है और दिखने में भी सुन्दर नहीं है।' ३२४ वीर विक्रमादित्य
SR No.006163
Book TitleVeer Vikramaditya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Chunilal Dhami, Dulahraj Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages448
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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