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________________ हरिमती बोली- 'इसमें हमें कोई आपत्ति नहीं है।' 'किन्तु इस भारी करंडक को साथ कैसे ले चलेंगे? यदि कोई बाल-सेवक मिल जाए तो अच्छा हो।' उसे बटुक रूप में विक्रम पीछे-पीछे आता हुआ दिखाई दिया। उसका रूप एक दरिद्र लड़के जैसा था। विजया ने पूछा-'ओ लड़के! हमारे साथ इस करंडक को उठाकर चलेगा?' 'हां, देवी।' "कितनी मजदूरी लेगा?' 'जो भी आप देंगी।' बालक वेशधारी विक्रम ने कहा। विजया ने तत्काल उसके सिर पर करंडक रख दिया और तीनों सखियां सरोवर की ओर चल पड़ीं। वैताल भी अदृश्य रूप में साथ ही था। एकाध घटिका के बाद वे सरोवर पर पहुंचीं। एक वृक्ष के पास जाकर हरिमती ने अपना भूमि-विस्फोट दंड धरती पर पटका और तब पाताललोक में जाने का मार्ग खुल गया। विजया ने बटुक के सिर से करंडक नीचे उतारते हुए कहा- 'ओ लड़के! तू इस करंडक को संभालकर कुछ देर यहां ठहर। हम सब स्नान कर आ रही हैं।' 'अच्छा, देवी!' कहकर विक्रम वहां बैठ गया। हरिमती, विजया और गोपा ने अपना-अपना दंड करंडक पर रख दिया और लड़के से कहा- 'देख, इनको भी संभालकर रखना।' 'जी!' विक्रम बोला। तीनों सखियां बातें करती-करती सरोवर के पाल की ओर गईं। अदृश्य वैताल ने कहा- 'महाराज! तीनों दंड लेकर हम भी पाताललोक में चलें।' विक्रम ने तीनों दंड ले लिये। वैताल ने करंडक संभाला और दोनों पाताललोक में जाने के लिए बड़े मार्ग में प्रविष्ट हुए। वैताल की शक्ति और भूमि-विस्फोट दंड के प्रभाव से दोनों कुछ ही समय में पाताललोक में पहुंच गए। ___ पाताललोक में एक नागकुमार का विवाह होने वाला था, इसलिए वर की शोभायात्रा के लिए बहुत तैयारियां हो रही थीं। यह देखकर वैताल बोला- 'महाराज! तीनों सखियां यहां पहुंच जाएंगी। यदि आप नागकुमार बनकर उसका स्थान ले लें तो.....।' 'किन्तु कैसे?' ३१० वीर विक्रमादित्य
SR No.006163
Book TitleVeer Vikramaditya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Chunilal Dhami, Dulahraj Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages448
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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