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________________ 'पहले विश्राम कर लो, फिर प्रवास में सारी बात बताऊंगा।' इतना कहकर विक्रम ऊंट की नकेल पकड़कर जाने लगे। राजकन्या ने भय के स्वरों में कहा- 'कहां जा रहे हैं?' 'संशय मत करो-इस प्रकार जंगल में तुम्हें एकाकी छोड़कर नहीं जाऊंगा। मैं ऊंट को पानी पिलाने के लिए जलाशय पर ले जा रहा हूं।' राजकन्या अवाक् होकर विक्रम की ओर देखती रही। उसने सोचा, यह पुरुष बहुत सुन्दर और निर्मल है। यह जुआरी क्यों बना ? अब मुझे कहां ले जायेगा? अब इस पुरुष से विलग होने का भी कोई अर्थ नहीं है, क्योंकि इसके हाथ का स्पर्श दो-तीन बार हो चुका है। अब तो नियति को जो मंजूर है, वही होगा। यह पुरुष जुआरी हो या अन्य कोई, इसको जीवनसाथी बनाए बिना कोई चारा नहीं है। ऊंट को पानी पिलाकर विक्रम लौट आए। वे बोले- 'क्यों? विश्राम नहीं करना है? प्रवास करें?' लक्ष्मी बोली- 'जैसी आपकी इच्छा।' दोनों ऊंट पर बैठ गए और ऊंट मार्ग पर चल पड़ा। पवन वेग से प्रवास चल रहा था। मध्याह्नकाल पूरा हो गया। राजकन्या ने पूछा- 'आपने मुझे अभी तक नहीं बताया?' ... 'ओह! देखो मैं एक जुआरी हूं-दक्षिण दिशा में एक भीलपल्ली है। वहां के भील राजा के साथ जुआ खेलते समय मैं सारा धन हार गया। साथ-ही-साथ मैं एक नवयौवना को दांव में लगाकर बाजी हार गया। मैं अपनी पराजय को विजय में बदलने के लिए उस ओर जा रहा हूं।' विक्रम ने स्वाभाविक स्वर में कहा। यह सुनकर राजकन्या सहम उठी। उसने मन-ही-मन सोचा, क्या यह जुआरी मुझे भी दांव में रखेगा? ओ भगवान ! मैंने अपना घर क्यों छोड़ा? जो संतान माता-पिता का कहना नहीं मानती, उसकी यही दशा होती है। वह कुछ बोली नहीं, मन-ही-मन व्यथा का अनुभव करने लगी। मार्ग में दो-तीन छोटे गांव आए, परन्तु विक्रम ने ऊंट को कहीं नहीं रोका। और फिर एक वन-प्रदेश प्रारम्भ हो गया। कोई पथिक मिला नहीं, जिससे विक्रम पूछकर अपना मार्ग तय करते। वे उसी वन-प्रदेश में ऊंट को पवन वेग से लिये जा रहे थे। लगभग दो योजन दूर जाने पर एक छोटी नदी मिली। विक्रम ने कहा- 'देवी! सांझ होने ही वाली है। वन-प्रदेश कब पूरा होगा, इसकी कल्पना नहीं की जा सकती, इसलिए इस नदी के तट पर हमें रात बितानी होगी।' २६० वीर विक्रमादित्य
SR No.006163
Book TitleVeer Vikramaditya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Chunilal Dhami, Dulahraj Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages448
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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