________________
अब एक-एक पदाधिकारी आने लगे।
महामंत्री भट्टमात्र ने आश्चर्य व्यक्त करते हुए कहा, 'कृपानाथ! आपने अशक्य को शक्य बना डाला....नगरी में किसी को यह विश्वास नहीं था कि आप देवदमनी को हरा देंगे।'
वीर विक्रम ने गम्भीर स्वरों में कहा, 'महामंत्री! यह विजय मेरी हुई है, यह आप न मानें....आप सबकी चिन्ता और प्रार्थना का ही यह परिणाम है। मुझे इस बात का हर्ष है कि मेरी जनता सदा मेरे कल्याण की कामना करती रहती है। इस विजय की खुशी में कल याचक जो कुछ भी मांगें, वह उन्हें मिले, ऐसी व्यवस्था कर देना।'
और दूसरे दिन गांव के हजारों-हजारों लोग महाराज का अभिनन्दन करने आए। राजा ने अपनी प्रिय प्रजा का उचित सत्कार किया। ___जनता के उल्लास को देखकर वीर विक्रम ने यह जान लिया कि जो राजा प्रजा के सुख में सुखी और दु:ख में दु:खी होता है, तो प्रजा भी राजा के सुख में सुखी और दुःख में दु:खी होती है। जो राजा सत्ता के मद में पागल बन जाता है, और जनता को पीड़ित करता है, वह राजा या पदाधिकारी एक दिन जनता की आहों से भस्मसात् हो जाता है।
राजपुरोहित ने नौवें दिन विवाह का शुभ मुहूर्त निकाला और उस दिन जनता के अपार उल्लास के मध्य वीर विक्रम का देवदमनी के साथ धूमधाम से विवाह हो गया।
लग्न-विधि का कार्य पूरा होने पर देवी को नमस्कार कर कमला रानी देवदमनी को उसके आवास पर ले गई। वीर विक्रम मित्रों और मंत्रियों के साथ एक कक्ष में गए।
आज विवाह के निमित्त वीर विक्रम ने वैताल दम्पति को भी याद किया था। वैताल दम्पति मानव रूप में वहां सभी क्रिया-कलापों में भाग ले रहा था। इनके भोजन की व्यवस्था वीर विक्रम के निजी खंड में की गई थी।
मध्यरात्रि में वीर विक्रम ने वैताल दम्पति को उत्तम भोज्य-सामग्री से तृप्त किया और कहा, 'मित्र! यह यश तुम्हारे हिस्से में जाता है। तुम्हारी पत्नी ने भी पूरा सहयोग दिया था....तुम दोनों ने मुझे जो सहयोग दिया, वह बात आज तक मैंने अपने मन में ही रखी थी, किन्तु आज मुझे वह बात बतानी ही पड़ेगी।'
वैताल-पत्नी बोली-'अच्छा, नई महारानी को बतानी हैन? यह तो हमारे मनाह करने पर भी आप कहेंगे ही। प्रथम रात्रि में पुरुष स्त्री के समक्ष मक्खन जैसा कोमल और मुलायम हो जाता है।'
२३४ वीर विक्रमादित्य