________________
'नहीं, महाराज! नियम के अनुसार मैं अवश्य खेलूंगी। मैं तनिक भी अस्वस्थ नहीं हूं।'
और तीसरी बाजी प्रारंभ हुई।
विक्रम ने स्वप्न-कथा प्रारंभ करते हुए कहा- 'देवी ! स्वप्न बहुत विचित्र था। मैंने देखा कि तुमने तीसरा नृत्य प्रारम्भ किया। वह नृत्य अत्यन्त भव्य और आह्लादक था। उस नृत्य की सम्पन्नता पर तुम्हें उपहार स्वरूप स्वर्ण की एक डिबिया मिली....।'
'कृपानाथ.....!'
'मैं सच कहता हूं, देवदमनी ! वह डिबिया भी मुझे प्रात:काल शय्या पर मिली। देखो, यह रही डिबिया....' कहकर विक्रम ने स्वर्ण की वह डिबिया देवदमनी को दी।
देवदमनी के हृदय में अत्यन्त क्षोभ हुआ। वह तीसरी बाजी भी हार गई।
तत्काल वीर विक्रम अपने आसन से उठकर बोले-'प्रिये! शर्त के अनुसार मैंने तीनों बाजियां एक-एक कर जीत ली हैं। तुमने मेरे हारने के आनन्द का अपहरण कर लिया है।'
देवदमनी का वदन लज्जा से लाल हो गया। वह उठी और विक्रम के चरणों में झुक गई।
नागदमनी बोली-'महाराज! शर्त के अनुसार आप मेरी बेटी को स्वीकार करें। आप कहें उसी दिन विधिवत् विवाह की रस्म पूरी करूंगी।'
___'मैं राज-ज्योतिषी को पूछकर कहूंगा'-कहकर विक्रम ने देवदमनी को दोनों हाथ पकड़कर उठाया और रस-भरी वाणी में कहा-'प्रिये! बहुत बार सत्य स्वप्न का रूप धारण कर आता है।'
देवदमनी नीची दृष्टि किए खड़ी रही।
४६. पंचदंड छत्र की जानकारी अपनी पुत्री देवदमनी को लेकर नागदमनी घर की ओर गई। देवदमनी के मन में एक प्रश्न बार-बार उभर रहा था-मैं सिकोत्तरी देवी के मन्दिर में गई थी और मैंने इन्द्र के समक्ष नृत्य कर उनसे तीन दुर्लभ वस्तुएं उपहारस्वरूप प्राप्त की थीं। किन्तु इसकी जानकारी महाराजा विक्रमादित्य को कैसे हुई ? और सरोवर में गिरी वस्तुएं महाराज के पास कैसे आ गईं?
२३२ वीर विक्रमादित्य