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________________ उनका मन 'वह चोर कौन है ?' 'वह चोर कौन होगा ?' इन प्रश्नों की उधेड़-बुन में उलझ गया । २६. भयंकर अट्टहास अवंती नगरी के श्रेष्ठियों के यहां चोरी हो, चार-चार स्त्रियों का अपहरण हो जाए, फिर भी चोर को पकड़ा न जा सके। चोर कहां रहता है और कैसा है - यह ज्ञात न हो सके, यह बहुत आश्चर्य की बात थी। आज विक्रमादित्य महीनों के वियोग के पश्चात् प्राणेश्वरी से मिलने आये थे, और मन में अनेक स्वप्न संजो रखे थे, किन्तु यहां आते ही चोर के वृत्तान्त ने उनके सभी स्वप्नों को धूलिसात् कर डाला । शयनगृह में जाने के पश्चात् भी विक्रम का मन अनेक संकल्पों-विकल्पों में उलझा रहा । दूसरे दिन नगर-रक्षक, महामंत्री तथा अन्य मंत्री, महाबलाधिकृत आदि महाराजा के पास एकत्रित हुए। चोर को पकड़ने के विषय में अनेक चर्चाएं चलीं, किन्तु किसी एक निर्णय पर नहीं पहुंचा गया। कोई कारगर उपाय नहीं दिखा। नगर-रक्षक और महाबलाधिकृत का कहना था- 'यह चोर कोई भी क्यों न हो, पर वह चोरी करने के पश्चात् पीछे कुछ भी निशानी नहीं छोड़ता । उसके पदचिह्न भी नहीं मिले। इन संयोगों में चोर को कैसे पकड़ा जाए ?' महामंत्री तथा अन्य मंत्रियों ने भी यही कठिनाई प्रदर्शित की। विक्रमादित्य बोले- 'राज्य में कहीं भी कुछ भी हो, उसकी पूरी जिम्मेदारी राजा की होती है। राजा केवल शोभा की मूर्ति नहीं है। राजा को ईश्वर का अंश इसीलिए कहा जाता है कि उसने समूची प्रजा की रक्षा करने का उत्तरदायित्व स्वयं ओढ़ा है। चोर कितना ही चतुर और मंत्रशक्ति-सम्पन्न क्यों न हो, अन्तत: वह एक मनुष्य मात्र है। मनुष्य कभी भूल न करे, यह असम्भव है।' हमारी इस नगरी से जिन चार कन्याओं का अपहरण हुआ है और धनमाल की चोरी हुई है, उसको किसी भी उपाय से पुन: प्राप्त करना है। चारों दिशाओं में गुप्तचर भेज देने चाहिए । नगरी के बाहर ऐसे कोई स्थान हों तो उनको देखना है । मेरा अनुमान है कि जो चोर चार कन्याओं का अपहरण कर ले गया है, वह नगर में तो रह नहीं सकता । वह नगर के बाहर कहीं रहता होगा। हमें रात्रि में पूरी सावधानी बरतनी होगी और कोई भी अनजान मनुष्य यदि नगरी में प्रवेश करता है तो उससे पूरी पूछताछ करनी होगी।' वीर विक्रमादित्य १४३
SR No.006163
Book TitleVeer Vikramaditya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Chunilal Dhami, Dulahraj Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages448
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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