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________________ 'आज्ञा दें ।' 'विवाह से एक दिन पहले मैं महादेवी के नाम एक पत्र तुम्हें दूंगा। वह पत्र तुम महादेवी को देना। उसके आधार पर वह तुम्हें नवलखा हार देगी। तुम उस हार को लेकर यहां आ जाना।' 'नवलखा हार !' 'हां, प्रिया के प्रथम मिलन पर मैं उसे यह हार देना चाहता हूं।' 'उस बहुमूल्य हार को देखकर राजकुमारी के मन में कोई संशय जागृत हो गया तो ?' ‘उसका उत्तर मैंने सोच लिया है। मैं कहूंगा कि मेरे राग की आराधना से प्रभावित होकर मालवपति ने मुझे यह हार भेंटस्वरूप दिया था।' वैताल प्रसन्नदृष्टि से विक्रम को देखने लगा । उत्सव के दिन सदा छोटे होते हैं। उल्लास के कारण दिन कब पूरा बीत जाता है, इसका भान नहीं रहता । विवाह के एक दिन पूर्व विक्रमादित्य ने अपनी महारानी को संबोधित कर पत्र लिखा । पत्र लिखकर दो-तीन बार उसे पढ़ा। फिर उसे एक नली में बन्द कर ऊपर से सील लगा दी। संध्या के पश्चात् पत्र लेकर वैताल को वहां से रवाना किया। वैताल मन की गति से चलने वाला व्यन्तरराज था। उसकी शक्ति अद्भुत थी। वह कुछ ही क्षणों में अवंती के राजभवन में एक कक्ष में अदृश्य रूप से पहुंच गया । अवंती की महारानी देवी कमलावती अभी-अभी उपवन से लौटी थीं । वैताल अदृश्य था। उसने सोचा- यदि मैं अचानक ही प्रकट होऊंगा तो संभव है दास-दासी घबरा जाएं, भयभीत हो जाएं। वह पुन: राजभवन के प्रांगण में चला गया। रात्रि का प्रारम्भ हो चुका था। सारा राजभवन दीपमालिकाओं के प्रकाश झिलमिला रहा था। - वैताल ने दृश्यरूप धारण किया। उसने द्वारपाल के पास जाकर कहा‘महादेवी को संदेश दो कि महाराजा विक्रमादित्य के मुख्य समाचार देने के लिए दूत आया है । ' कुछ क्षणों तक द्वारपाल वैताल को देखता रहा, फिर एक दासी को भेजकर महारानी को संदेश भेजा। थोड़े ही समय में दो दासियां दूत को बुलाने आ गईं। वैताल जब महादेवी के कक्ष में गया तब नवयौवना महारानी एक आसन पर बैठी १२४ वीर विक्रमादित्य
SR No.006163
Book TitleVeer Vikramaditya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Chunilal Dhami, Dulahraj Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages448
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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