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ढाळ १
दूहा
दसवैकालिक पंचमें, द्वितीय उद्देशक माय। दाख्यौ दीन दयाल जी, सुगुरु आंण सुखदाय ।। आराधै आचार्य नै, श्रमण भणी पिण तेम। गृहस्थ पिण पूजै तसु, जाणै सुविनय' एम।। नाराधै आचार्य नै, श्रमण भणी पिण तेम। गृहस्थ पिण नींदै तसु, जाणै अविनय एम।। इण विध श्रीजिन आखियौ, सुगुरु आण अगवाण। जिण सतगुरु आराधिया, (तसु)जीतब जन्म प्रमाण। जय जश करण सुआण इम, श्रमणी संत अनूप। जो सुख चावौ जीव नै, (तो)आराधौ धर चूंप॥
हो गुणवता महागुणी, सुगुणां संत सती सुखदाया हो लाल ।
जे बुद्धिवंता महामुनि, सासण में रंगरत्ता सवाया हो लाल॥धुपदं॥ ६ आण सुगुरु नी आराधियै, सुविनीत सुगुण सुखदाया हो लाल।
सेषै काळ चउमासै विचरणौ, अगवांण आण हुलसाया हो लाल । ७ छांदै सुगुरु नै चालणौ, चउमासौ उतां चित चाह्या।
(गुरु नै) पहिलां पूछयां विण अन्य दिशा, विण मरजी न विचरै मुनिराया। चउमासा पछै गुरु रा दर्शन कीयां, सूंपौ पोथ्यां पडगै सुखदाया। सूंप्यां विण. च्यारूं आहार म भोगवौ, मेटो मान मछर दंभ माया। कनली आर्या गुरु पै मोकळ्यां, समाचार त्यां साथे सवाया।
आर्यां पोथ्यां - हाजर आपरै, मन मानै ते दिवस मंगाया। १० पाडियारी सूंपी मो भणी, सहू आप तणीं नेश्राया। ... ममत धणियाप न मांहरै, सुविनीत ए शब्द सुणाया।।
१. सुविनीत
४. विचारों के अनुकूल २. अविनीत
५. उपकरण। ३. लय-घूम घूमालो घाघरो....। ६. प्रतिहारिक-जो वापिस दी जा सके। ६६ तेरापंथ : मर्यादा और व्यवस्था