SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 8
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गांव में देहान्त हुआ। आप चतुर्थ आचार्य हुए। आचार्य ऋषिराय के देवलोक होने का समाचार माघ शुक्ला ८ के दिन बीदासर पहुंच, जहां आप विराज रहे थे। सं० १९०८ माघ शुक्ला १५ प्रातः काल पुष्य नक्षत्र के समय आप पदासीन हुए। पट्टोत्सव बड़े हर्ष के साथ मनाया गया। आचार्य ऋषिराय ने ६७ साधुओं एवं १४३ साध्वियों की धरोहर छोड़ी। आपने जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के चतुर्थ आचार्य पद को ३० वर्षों तक सुशोभित किया। आपका स्वर्गवास सं० १९३८ की भाद्र कृष्ण १२ के दिन जयपुर में हुआ। श्रीमज्जयाचार्य ने अपने जीवन-काल में लगभग साढ़े तीन लाख पद्य-परिणाम साहित्य की रचना की। जैन वाङ्मय के पंचम अंग 'भगवई' का आपका राजस्थानी पद्यानुवाद 'भगवती जोड़' राजस्थानी साहित्य का सबसे बड़ा ग्रन्थ माना जाता है। यह ५०१ विविध रागनियों में गेय गीतिकाओं में निबद्ध है। श्रीमद् जयाचार्य की साहित्यिक रुचि बहुविध थी। तेरापंथ धर्म संघ के संस्थापक आदि आचार्य श्रीमद् भिक्षु के बाद आपकी साहित्य-साधना बेजोड़ है। आप महान् तत्त्वज्ञानी थे। जन्मजात कुशल इतिहासलेखक थे। सजीव संस्मरणात्मक जीवन-चरित्र लिखने की आपकी प्रवीणता अनोखी थी। आप बड़े कुशल संघव्यवस्थापक और दूरदर्शी आचार्य थे। आपकी कृतियों का सौष्ठव, गांभीर्य एवं संगीतमयता-ये सब मनोमुग्धकारी है। प्रस्तुत ग्रन्थ 'जय वाङ्मय' के ९वें ग्रन्थ के रूप में प्रकाशित हो रहा है। यह ग्रन्थ जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ की मर्यादा एवं व्यवस्था विषयक श्रीमद् जयाचार्य की सर्व कृतियों का संग्रह है। इस में समाविष्ट कृतियां प्रथम बार ही प्रकाश में आ रही हैं, अतः यह संग्रह अपने आप में अपूर्व है। २६ नम्बर, १९८३ -श्रीचन्द रामपुरिया द्वितीय संस्करण जयाचार्य निर्वाण शताब्दी पर प्रकाशित इस महत्त्वपूर्ण ग्रंथ का आचार्य भिक्षु निर्वाण द्विशताब्दी के अवसर पर पुनः प्रकाशन हो रहा है। प्रस्तुत द्वितीय संस्करण की निष्पत्ति में शासन-गौरव मुनि मधुकर जी का जो बहुमूल्य योग रहा है, उसके लिए हम उनके आभारी हैं। श्रद्धेय आचार्यवर एवं युवाचार्य वर को जलगांव मर्यादा महोत्सव पर यह ग्रंथ समर्पित कर जैन विश्व भारती परिवार प्रसन्नता की अनुभूति कर रहा है। मंत्री भागचंद बरडिया
SR No.006153
Book TitleTerapanth Maryada Aur Vyavastha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya, Madhukarmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2004
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy