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११९ दूध सूं रोटी मसलणी नहीं। १२० किवाड़ जड़े जठै रहै। १२१ बोता जयणा नहीं करै। १२२ थानक में कुणका उठावै। १२३ देव गांम में आर न ल्याया पिण मन में तो भाव। १२४ दोय साधां ने न रहिणो चौमासा माहै। १२५ तीन आर्यां ने न रहिणो चोमासा माहै। १२६ आर्यां ने आडो न जड़णो कवाड। १२७ आथण रा उचार पासवण री तीन जांगा जोवणी। १२८ आहार करै तरै जगा जोवणी। १२९ विना वचायां सुतर वाचै। १३० नसीत वाच्यां विना चौमासो करै। १३१ सुतर अनुक्रमै वाचणा। १३२ जोरी दावै हाथ जोड़ावै। १३३ आर्या रे गुरणी नही। १३४ गाम में धोवण पाणी वहिर ने विहार कीधो पाछो आवै तो त्यांरो वेहरणो
नहीं। १३५ ईर्या जोवतो वहरावण आयो पाछो जातो अजणा करे तो वहिरणो नहीं। १३६ सुखजी आश्री रूपचंद सोगांणी निषेध्या। १३७ भारमल जी ने नषेध्या बायां आश्री। १३८ भारमल जी ने वेणोजी नेडा बैठा त्यां निषेध्या नेणवा मांहे। १३९ लाडीजी न अजोग दिष्टंत सीखाया। १४० माधोपुर में पाणी री जोड़ कीधी। १४१ गुजरमल फेर व्रत भांग्या। १४२ रोछाड में आहार कीधो छांटां आइ। १४३ कोठारिया री नदी रो पांणी धोवण दाखल कह्यो। १४४ विरधमानजी रूपचंदजी री लोकां में घणी आसता उतारी लोगां आगै। १४५ दिख्या दीधी तरे ओर पछे ओर। १४६ बोल घणा पूछां तो कोइ जाब न देअठी उठी उतार दै। १४७ बोल पूछां तरे खेध धणी करता। १४८ कांकरोली में कुणका उठावण री चरचा कीधी तरे घणो हुवो। १४९ पुर में आर्यां ने बोल पूछ्या जाब नाया।
परिशिष्ट : परम्परा री जोड़: ४६९